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________________ 362 । पडाकइपुष्फयंतविरयक महापुराण [99.11.]] वणि कणवतेउ पिय चंदमाल अहिणवसुयंध णं कुसुममाल। सुउ जायउ ताहं सुवण्णतेउ दुस्सीलु दुटु कुलधूमकेउ। पुवुत्त तासु अणुवम सुहीहिं दिण्णी ण मुणियवरपुग्विणीहि । गुणमित्त होता हरिणलपण व पालर सोपवें "तुट्ठमयण । जलजत्तहि" जाइवि जलहितीरि सरिमुहि मुउ वरु गंभीरणीरि। 15 वहुयइ तहिं गपि विमुक्कु जीउ पारावयजुयलुल्लउं विणीउं। रायउरि दो वि जायई सणेहि गंधुक्कडवणियह तणइ गेहि। घत्ता--तहिं बिहिं मि णिवसंतहि समउ मंतहि सिसुसंसग्गें गुणियई। अक्खराई मत्तालई मलपक्खालई मुणिवरवयणई सुणियई ॥1॥ (12) वरु पवणवेउ णामेण पक्खि रइवेय णाम पक्खिणि चलक्खि । बेण्णि वि पालियसावयवयाइं उज्झियरयाइं पालियदयाई । पाविठ्ठ मरिवि कुच्छ्यिविवेउ पुरुदंसउ हुयउ सुवण्णतेउ । तें पक्खिणि कणभोयणविलुद्ध खरकरचवेडदंतेहिं रुद्ध । पक्खि मुहयल्लिय घणघणाइ मेल्लाविय पक्खझडप्पणाइ। अण्णहिं दिणि पुरवरणियडसेलि कीलंतई णवतरुवेल्लिजालि। कुसुममाला हो। उसका स्वर्णतेज नाम का पुत्र हुआ जो दुःशील, दुष्ट और अपने कुल के लिए पुच्छलतारा था। पूर्वोक्त अनुपमा कन्या, भवितव्य जाननेवाले सुधीजनों ने उसे (कनकतेज को) नहीं दी। मृगनयनी वह गुणमित्र के लिए दी गयी। उनके काम को सन्तुष्ट करनेवाले दिन सुख से बीते। एक बार जलयात्रा के लिए जाकर, समुद्र के किनारे नदी के मुहाने पर गम्भीर जल में वह मर गया। वधू ने भी वहीं जाकर अपने प्राणों का त्याग कर दिया। वे दोनों राजपुर में सेठ गन्धोत्कट के स्नेहपूर्ण घर में विनीत कबूतर-कबूतरी का जोड़ा हुए। धत्ता-वहाँ रहते हुए और समय बिताते हुए उन दोनों बच्चों के संसर्ग से उन्होंने मात्रायुक्त अक्षर सीख लिये। और पाप का प्रक्षालन करनेवाले मुनिवरों के वचनों को सुना। (12) वर पवनवेग नाम का कबूतर हुआ और चंचल आँखोंवाली वधू रतिवेगा नाम की पक्षिणी। दोनों ही श्रावक व्रतों का पालन करते थे। वे रति से रहित दया का पालन करनेवाले थे। कुत्सित विवेकवाला वह (कनक तेज) बिलाव हुआ। उसने कणों के भोजन की लोभिन कबूतरो को तीव्र हाथों की चपेट और दाँतों से अवरुद्ध कर लिया। कबूतर ने मुँह में पड़ी हुई उसे अपने पंखों की सघन झड़पों से छुड़ाया। एक दूसरे दिन, नगर के निकट के पर्वत के नश्वृक्षों के लताजाल में क्रीड़ा करते हुए, पापियों के द्वारा पहले से बिछाए गये जाल * A होहि । ५.AP बराबहीटिं। 10. AP तुटु भयण। 1. AP जलजंतह। 12. A रवंतहिं । (12) 1. A पथणयेगु । 2. A पंखि। 3. P कोडतइ ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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