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________________ 99.1L10] महाकइपुप्फयंतविरया महापुराणु [ 361 आरुहहि तरंगिणि णाम सेज जामिणिसमयागमि जणमणोज । तं तेंव करिवि गउ सो वि तेत्यु साहसरयणायरु वसइ जेत्थु । घत्ता-ता दोहिं मि भायहिं क्यपियवायहि मुहं महं महं जि पलोइउं। 20 अवऊदु परोप्परु'' णेहें णिभरु रोमंचुयपविराइउँ५ ॥10॥ पुणु सोहापुरि णवकमलवत्तु' तहु घरिणि वसुंधरि चंदमुहिय पारावयजुवलु पलोयमाण सिंचिय सीयलचंदणजलेण आयालयसुंदरि कामकुहिणि सा पुच्छिय दोहिं मि भणु णयोग तं वयणु सुणिवि कुंअरीउ' ताई आयण्णिवि तं दोण्णि वि गयाउ हेमंगई पुरि घणि रयणतेउ अणुवम सुय अणुवम कइ कहति दढमित्तभाइ णामें सुमित्तु। कलहंसगमणि सिरिचंद दुहिय। पंगणि' मुच्छिय णं मुक्कपाण' । आसासिय चलचमराणिलेण। तहि तिलयचंदिया णाम बहिणि। किं णिवडिय णं सरहय कुरंगि। संबोहियाउ भवसंकहाइ । पियरहं कहति पणमियसिराउ । पिय रयणमाल तह सोक्खहेउ। तत्थेव णयरि अवर वि वसंति। __10 नाम की सेज पर सो जाओ।" वैसा करके वह भी वहाँ गया, जहाँ साहसों के समुद्र कुमार जीवन्धर थे। घत्ता-प्रिय बातें करते हुए दोनों भाइयों ने बार-बार एक-दूसरे को देखा। परस्पर एक-दूसरे का आलिंगन किया, स्नेह से पूर्ण रोमांच हो आया। फिर, शोभापुरी (शोभानगर) में नवकमल के समान मुखवाला दृढ़मित्र का भाई सुमित्र था। उसकी वसुन्धरा नाम की चन्द्रमुखी गृहिणी और कलहंसगामिनी श्रीचन्द्रा नाम की कन्या थी। एक कबूतर के जोड़े को देखकर वह घर के आँगन में मूर्छित हो गयी, मानो प्राण ही निकल गये हों। ठण्डे चन्दनजल से सींचने तथा चल-चामरों की हवा से वह आश्वस्त हुई। काम की गली, सखी अलकासुन्दरी एवं उसकी बहिन तिलकचन्द्रिका आयीं। उन दोनों ने उससे पछा-“हे नतांगी बताओ, बाणों से आहत हिरणी की तरह तुम क्यों गिर पड़ीं ?" यह वचन सुनकर उसने उन दोनों को अपनी पूर्वजन्म की कथा से सम्बोधित किया। उसे सुनकर वे दोनों भी वहाँ से चली गयीं और प्रणाम कर पिता से कहा-"हेमांगद नगर में रत्नतेज नाम का सेठ था। रत्नमाला उसकी सुखदेनेवाली प्रिया थी। ये (चन्द्रिका) उन दोनों की अनुपमा नाम की कन्या थीं। कवि भी उसे अनुपम कहते थे। उसी नगर में एक और कनकतेज सेठ रहता था। उसकी पत्नी चन्द्रमाला थी, मानो अभिनव सुगन्धवाली 10. मुहु गुहु मुई जि पलोरया । मुहूं मुहुँ जि। 11. AP पसेप्पर । 12. AP रोमविया । (11) 1. APकमलणेत्तु। 2. पारावहजयलु । 3. B अंगाण। 4. B मुक्कप्राण। 5. A "चंदिया। 6. A लोंगे। 7. AP कुअरीए। 7.A अयाह
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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