________________
--
358 ।
महाकाइपुष्फयंतविण्यउ महापुराणु
[99.8.11
तें पेसिउ कट्टुंगारयासु
णवमेहु व फुरियंगारयासु । उवसामिउ देवें रिउ ण भंति पियवयणे के के णउ समंति। यत्ता-रणविजयमहाकरि चडियउ णरहरि पुरवरणारिहिं दिलउ।
जयमंगलसदें तूरणिणदें जणणणिवासि पइट्ठउ ॥8॥
वसु जायउ सयलु वि मणुयसत्धु णिउ जक्खें णिययमहीहरासु तहिं अच्छिउ सो कइवयदिणाई पुणु आयउ पहु चंदाहणयरु तहु अस्थि तिलोत्तिम तिलणिबद्ध तारावलिणिहकरकमणहाहि सा दट्ठी दुहें विसहरेण जीवावइ जो परणाहपुत्ति सो पड़ह धरिउ जीबंधरेण धणवइणा दिण्णउं अद्धरज्जु बहुभायर वर अच्चतसमुह
सो णस्थि जो' ण तहु तसिउ तेत्यु। बहुरूविणि अंगुत्थलिय तासु। माणंतु चारु सुरतरुवणाई। तहिं धणवइ णामें राउ पवरु। महएवि रूवसोहग्गणिद्ध । पोमावइ णामें धीय ताहि। डिडिमु देवाविउ णिववरेण । तह दिज्जइ सा अण्ण वि धरत्ति। जीवाविय सा मंतखेरण। अण्णु वि तं कण्णारयणु पुज्जु । जाया किंकर धणवालपमुह।
10
भेजा हो। यक्ष ने शत्रु को शान्त कर दिया। इसमें सन्देह नहीं कि प्रियवचन से कौन-कौन शान्ति को प्राप्त नहीं होते ?
पत्ता-युद्ध-विजय के महागज पर आरूढ़ उस नरश्रेष्ठ को नगरनारियों ने देखा। जयमंगल शब्द और तूर्य के निनाद के साथ उसने अपने पिता के घर प्रवेश किया।
समस्त नरसमूह उसके अधीन हो गया। वहाँ ऐसा. एक भी व्यक्ति नहीं था, जो उससे तुष्ट न हुआ हो। यक्ष उसे अपने पर्वत पर ले गया और उसे बहुरूपिणी अंगूठी प्रदान की। वह वहाँ पर सुन्दर वनवृक्षों का आनन्द उठाता हुआ कुछ दिनों तक रहा। फिर वह चन्द्राभ नगर में आया। उसमें धनपति नाम का एक महान् राजा था। उसकी तिलोत्तमा नाम की स्नेहमयी महादेवी थी, जो रूप और सौभाग्य से समृद्ध थी। उसकी तारावली के समान हाथों और पैरों के नखवाली पदमावती नाम की कन्या थी। उसे एक दुष्ट विषधर ने काट खाया। राजा ने नगर में यह मुनादी करवा दी कि जो राजा की पुत्री को जीवित कर देगा, उसे वह और साथ ही धरती दी जाएगी। जीवन्धर ने यह मुनादी सुनी। उसने मन्त्राक्षरों से उसे जीवित कर दिया। राजा धनपति ने उसे आधा राज्य दे दिया और साथ ही पूज्य कन्यारत्न । कन्या के अत्यन्त सन्दर
4.A' तं पेसिज । 5. A वयणे के णउ ज्वसमाते। 6. AP रणे विजय ।
(9) I. AP ण त जो। ५. AP ख्यतोहग्ग" | S. A चिंडिमु; । डिम् । 4. AP रित्ति।