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________________ I 99.10.2 | महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु हिरामु दूरुज्झियरइसिंगारभारु । गउ रयणिहि पट्टणु खेमदेसि दिउ free सुंदरपवेसि बहुमहमहंतु विडियs कवाडई दढई केम खकिरणकलावुग्धाडियाई पुजिउ परमप्पर णिव्वियारु णियणाहरु परिमउलियकरेहिं वियसिउ चंपउ अक्खिउ परेहिं । आसपुर जाणिव पयासु वणिवइणा दिण्णी कृष्ण तासु । णामेण खेमसुंदरि ससोह धणुमग्गण अरिणरणियररोह । दिण्णउ विणएं अहिणववरासु चिरु होतउ तं विषयंधरासु । यत्ता - णाहहु सुअरेपिणु तणु विहुणेपिणु नियभिच्चयणविराइय । णियविज्जापाणें रयणविमाणें खेबरधीय पराइय ॥9॥ ( 10 ) पियंदंसणवियसियकमलणेत्त' रायरहुं पुणु चावधारि खेमउरु णाम बाहिरपवेसि । जिगु दिउ किकामु । फुल्लिउ चंपउ अलिगुमुगुमंतु अम्मि पावाई जेम । सरवरणवणलिणई' तोडियाइं । सहुं मिलिय पियहि" गंधच्वदत्त । एक्कु जि णिग्गउ बलणिज्जियारि । [ 359 15 20 धनपाल प्रमुख बहुतेरे श्रेष्ठ भाई उसके सेवक हो गये। एक रात वह क्षेमदेश के क्षेमपुर नगर चला गया। बाहर प्रदेश में उसने एक सुन्दर जिनमन्दिर देखा। उसने काम से मुक्त ( वीतराग ) जिन- भगवान की वन्दना की। उसके सुन्दर प्रवेश से महकता हुआ और भौंरों से गूँजता हुआ चम्पक वृक्ष खिल उठा। मन्दिर के दृढ़ किवाड़ उसी प्रकार खुल गये, जिस प्रकार अत्यन्त धर्मात्मा व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं। सूर्य की प्रखर-किरण-समूह से खिले हुए कमलों को उसने तोड़ा और रति के श्रृंगारभार की दूर से छोड़नेवाले निर्विकार परमात्मा की पूजा की। दोनों हाथ जोड़े हुए अनुचर-नरों ने जाकर अपने स्वामी से चम्पा के खिलने की बात कही। उसे आदेश - पुरुष जानकर सेठ ने उसके चरणों में क्षेमसुन्दरी नाम की कन्या दे दी और साथ ही शत्रुजनों के समूह का निरोध करनेवाले शोभायुक्त धनुषबाण, विनयपूर्वक नये वर को दे दिये जो पहले विनयन्धर के थे । 5. AP सुमुह 6. A. महमरुमहंतु; P महुमतमहंतु । 7. AP सरबरे शय। 8. B प्राणें । (10) 1. AP पियदंसणे 2. AP पियहो 3. AP गउ । धत्ता - तब अपने स्वामी की याद कर अपने शरीर को पीटती हुई, अपने भृत्यजन से विरक्त, विद्याधरी ( गन्धर्व - दत्ता) अपनी विद्या के सामर्थ्य से रत्नविमान से वहाँ पहुँची । ( 10 ) प्रिय के दर्शन जिसके कमलरूपी नेत्र खिल गये हैं, ऐसी गन्धर्वदत्ता प्रिय से मिली। वह पुनः राजपुर
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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