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________________ 356] महाकइपुष्फयंतबिरयउ महापुराणु [99.7.1 णरघइहिं णारिरयणाई होति उवसामिउ सो विज्जाहरेण अण्णहिं दिणि पउरें सहुँ अणिंदु वइसवणदत्तु तहिं वणि सुकंत सुरमंजरि णामें कायजाय चंदोयउ णामें चुण्णवासु हिंडेप्पिणु मंदिरु चेडियाइ अण्णेक्कु वि वणिउ कुमारदत्तु गुणमालइ बालइ रइउ चुण्णु वपिणउं लजियाई जायउ विवाउ दोहिं मि जणीहिं हिणी परिणत जीलंधरेण चंदोयउ भल्लउ दिव्यवासु जायज तरुणिउ णिम्मच्छराउ गउ णंदणवणु तहिं एक्कु कबिलु किं कहिं' मि किराडई भवणि जति । विज्ञासामत्थें सुंदरेण। थिउ उववणि वणकीलद परिंदु। साहारमंजरी णाम कंत। को पावइ किर तहि तणिय छाय। सामलियइ तहिं किउ जणपयासु । अहिमाणभमेण भमाडियाइ। विमला णामें तहु घरि 'कलत्तु । सूरोबउ पाम मयालिछण्णु । घरि घरि सुयंधगुणरंजियाइ । वणिधीयहं घणपीत्यणीहिं। परियाणियणिच्यलमहुयरेण। पायडिङ तेण तक्खणि जणासु । अण्णहिं वासरि घणिवरु णवाउ । ताडिउ डिंभहिं रइरमणचवलु। 10 ओर बोला-“स्त्रीरल राजाओं के लिए होते हैं। क्या कहीं भी वे भीलों के घर जाते हैं ?" लेकिन उस सुन्दर नामक विद्याधर ने अपनी विद्या के सामर्थ्य से उसे शान्त कर दिया। दूसरे दिन पौरजनों के साथ वनक्रीड़ा के लिए वह अनिन्द्य राजा उपवन में ठहर गया। उस नगर में वैश्रवणदत्त एक सुन्दर सेठ था। आम्रमंजरी उसकी पत्नी थी। सुरमंजरी नाम की उसकी कन्या थी। उसकी कान्ति को कौन पा सकता था ? उसकी दासी श्यामलता ने उसके चन्द्रोदय नामक चूर्ण की गन्ध का प्रचार अभिमान के भ्रम से भ्रमित होकर घर-घर जाकर लोगों में किया। उसी नगर में एक और सेठ कुमारदत्त था। उसके घर में विमला नाम की पत्नी थी। उसकी कन्या गुणमाला ने भी चूर्ण बनाया। भ्रमरों से आच्छादित उसका नाम सूर्योदय था। उसके सुगन्धगुण से मुग्ध होकर दासी विद्युल्लता ने घर-घर जाकर उसकी प्रशंसा की। सघन स्तनोंचाली उन दोनों सेठ-कन्याओं में विवाद हो गया। परीक्षा में निश्चल भ्रमरों से जिसने ज्ञात कर लिया है, ऐसे उस जीवन्धर ने उसी समय लोगों में यह प्रकट किया कि चन्द्रोदच चूर्ण अच्छा और दिव्यगन्धवाला है। दोनों युवतियों की ईष्या समाप्त हो गयी। दूसरे दिन एक नया आया हुआ सेठ नन्दनवन में वहाँ गया, जहाँ रतिक्रीड़ा करने में चंचल गम्भीर धीर एक कुत्ता लड़कों के द्वारा प्रताड़ित होकर नदी के भैंबर में पड़ गया था। भय से (7)। A काँम। 2. A . A भया । I. AP भगंध। 5. A बाणे नाणगः । चरतर गावाः ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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