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________________ 99.6.14] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु (6) पई दिउ सेट्ठि 'सकंतु संतु जिणदिक्ख लइय वणिणा सुधामि आगमणु पहोसइ तासु एत्पु उ लज्जइ सो तुह पेसणेण तावायउ चणिसुउ तहिं तुरंतु पत्थिउ णरणा सो सराहु महुं तणयहि मित्त सयंवरेण गणियपुरु णंदणवणि विचित्तु उच्छलिय वत्त मयणग्गिजलिय आइउ खगवइ लेविणु' कुमारि वीणावज्जें लायण्णपुण्ण परिणिय जयजयदुंदुहिरवेण पडवण्णु हु गुणगणमहंतु । दणु णिहियउ संपण्णकामि । तुप विसूरहि मा णिरत्यु | णियगोत्तसणेहविहूसणेण । अब्भागयविहि किउ पाहुणन्तु । तुम्हारइ पुरि कीरउ विवाहु । ता तं पडिवण्णउं वणिवरेण । विरइउ मंडल माणिक्कदित्तु । गाणाविह तहिं मंडलिय मिलिय । बहुमणयजुवाणहुं गाई मारि । जीवंधरेण णिज्जिणिवि कण्ण । सज्जणविरइयपउरुच्छवेण । घत्ता -- ता रइरसलुद्धे सुछु विरुद्धे कगारयपुङ्क्ते॑ । मायंगतुरंगहिं रहहिं रहंगहिं आढत्तउं रणु धुसें ॥6॥ [355 (6) AP सुकम्बु । 2. A कीर। 7. AP गियपुरे। 4. AP लेखिणु । 5 10 ( 6 ) तुमने कान्ता सहित सेठ को देखा । तुम्हारा गुणगण से महान् प्रेम उत्पन्न हो गया। सेठ ने जिनदीक्षा ले अपने घर में सम्पूर्ण मनोरथों हेतु पुत्र ( जिनदत्त) को स्थापित कर दिया। उसका यहाँ आगमन होगा, तुम व्यर्थ चिन्ता मत करो। अपने गोत्र के स्नेह से विभूषित तुम्हारी आज्ञा से वह संकोच नहीं करेगा। इतने में शीघ्र ही वणिकपुत्र वहाँ आ गया। उसके आने की विधि और पहुनायी की गयी। शोभावान उससे राजा ने प्रार्थना की- "तुम्हारे नगर में मेरी कन्या का स्वयंवर से विवाह किया जाये।" सेठपुत्र ने इस बात को स्वीकार कर लिया। वह अपने नगर गया और नन्दनवन में माणिक्यों से आलोकित एक विचित्र मण्डप बनवाया । कामदेव की आग से प्रज्वलित यह बात दूर-दूर तक फैल गयी और अनेक माण्डलीक राजा वहाँ आकर मिले। विद्याधर राजा अपनी कन्या लेकर आया जो कि बहुत से युवकजनों के लिए रति ( के समान ) थी। कुमार जीवन्धर ने वीणावादन द्वारा लावण्य से परिपूर्ण उंस कुमारी को जीतकर, जय-जय तथा नगाड़ों की ध्वनि एवं सज्जनों के द्वारा किये गये विशाल उत्सव के साथ उससे विवाह कर लिया । घत्ता - तब रतिरस के लोभी काष्ठांगारिक के धूर्त पुत्र ने विरुद्ध होकर हाथियों, घोड़ों, रथों और चक्रों से युद्ध प्रारम्भ कर दिया।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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