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________________ 350] महाकद्दपुप्फयंतबिरयउ महापुराणु [99.1.13 यत्ता-सयणयलि पसुत्तइ मउलियणेत्तइ सिविणइ तेयविराइउ । ___ मई दिहउ घंटउ राबविसट्टउ अवरु मउडु अवलोइउ | दिहें' एएं सिविणयफलेण कि होही भणु महुं णिम्मलेण । पई भणइ णिसुणि हलि कमलणणि महुँ मरणु तुज्झु सुउ चंदवयणि। मुहसत पाविवि अभु भुजेसइ महि परबलणिसुभु। तं णिसुणिवि' देवि वि भायरेण काइय दूरहि ण विसायएण। अण्णहिं दिणि मणहरचणि वसंतु रिसि सीलगुत्तु वरणाणयंतु। पणवेप्पिणु कुलसिरिलंपडेण पुच्छिउ वणिणा गंधुक्कडेण । महुं तणुरुह होति मरंति सव्व दीहाउ पुत्तु होही विगव्व। कि णर भणु भणइ मुणिंदु तासु तुह होही सुउ तिहुवणपवासु। ससियरसियकित्ति धरित्तिसामि दढचरमदेहु धिरु' मोक्खगामि । अहिणाणु णिसुणि मयतणयचाइ पिउवणि णच्चियडाइणिणिहाइ। तुहुं पुत्तु लहेसहि बलपयंडु दीहाउसु पडिभइसमरसोंडु। . तं वयणु सुणेप्पिणु जक्खिणीइ सिसुससहरधवलकडक्खिणीइ । भविवब्बरायरक्खणणिमित्तु रायालउं जाइवि गरुडजंतु। 10 घत्ता-शयनतल पर सोते हुए और आँखें बन्द किये हुए मैंने स्वप्न में तेज से शोभित घण्टा देखा और शब्द से विशिष्ट मुकुट देखा। (2) इस निर्मल स्वप्न के देखने से क्या होगा ? मुझे बताइए। राजा कहता है-“हे कमलनयने ! सुनो, हे चन्द्रमुखी, मेरी मृत्यु होगी और तुम्हारा पुत्र होगा। वह राजा (पुत्र) आठ लाभ प्राप्त करेगा और शत्रुबल का नाश करनेवाला धरती का भोग करेगा।" यह सुनकर देवी कान्ति या विषाद से अधिक प्रभावित नहीं हुई। एक दूसरे दिन, मनोहर उद्यान में उत्तम ज्ञानवान शीलगुप्त नाम के मुनि रह रहे थे। उन्हें प्रणाम कर कुलश्री के लम्पट गन्धोत्कट नामक सेठ ने मुनि से पूछा- "मेरे पुत्र होते हैं और मर जाते हैं। हे गवरहित, क्या मुझे दीर्घायु पुत्र होगा या नहीं, बताइए।" तब मुनि कहते हैं कि "तुम्हारा त्रिभुवन को प्रकाशित करनेवाला पुत्र होगा-चन्द्रमा के समान श्वेत कीर्तिवाला, धरती का स्वामी, दृढ़ चरमशरीरी, स्थिर और मोक्षगामी। उसकी पहचान सुनो। जिसमें मृतपुत्रों को छोड़ा जाता है और जिसमें डायनों का समूह नृत्य करता है, ऐसे मरघट में तू प्रचण्ड बल-दीर्घायुवाला प्रतियोद्धाओं से युद्ध में समर्थ पुत्र प्राप्त करेगा।" यह वचन सुनकर, शिशुचन्द्र के समान धवल कटाक्षोंवाली यक्षिणी ने होनेवाले राजा की रक्षा करने के बहाने, राज्यालय में जाकर और (2) I. AP have before this line : गरूपउ असोउ जिंतु दिट्टु, अण्णेक्कु लहुउ वदतु इछु। 2. AP पिउ। 3. AP पाविय अहलंभु । 4. AP तं सुवि देवि भावायाण। S. AP छाइय हरिसेण विसायएग। G. AP दिद। 7. A घिरमोक्न ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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