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महाकइपुष्फयंतविरयत महापुराणु
[98.20.9
घत्ता-इय आयणिवि धम्म भव्यलोउ आणंदिउ।
भरहतेउ भयवंतु पुष्पदंतु जिणवंदिउ' ॥20॥
इय महापुराणे तिसद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाभध्वमरहाणुमण्णिए महाकइपुष्फयंतविरइए महाकचे चंदणभवावण्णणं णाम
अहणउदिमो परिच्छेउ समतो ॥४॥
पत्ता-इस प्रकार धर्म सुनकर भव्यलोक आनन्दित हुआ। नक्षत्रों को आच्छादित करनेवाले तेज से युक्त पुष्पदन्त ने जिनवर की वन्दना की।
इस प्रकार वेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत्त महाकाय्य का चन्दनामव-वर्णन
नाम का अद्वानवौं परिच्छेद समाप्त हुआ।
3. AP जिणु देउ।