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98.20.8]
महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
सुइरु कालु सो तहिं शिवसेम्पिणु' मुउ सोहम्मसग्गि संभूयउ जंबूदीवि भरत जगपति पवणवेयखयरहु हुउ णंदणु चंदण तेण हरिय णियणेहें
धत्ता-गय सग्गहु धम्मेण वयहलेण" ससितेया । नागदत्तसस जा सि सा हूई मणवेया ||19 ॥
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जो तेण जि मारिउं खयरेसरु जायउ चेsयणरवइ जाहि जाय सुहद्द विमाणहु चुक्की वणि धणदेउ हववि गय सग्गहु वणिय वसहसेणु पुणु हूई सा णिग्गहिय तेण सणियाणें भवि भवि संसरंतु भवु आयउ इय संसारियाई संसार
अंतयालि संणासु करेष्पिणु । पुणु तेत्थाउ पडिउ पवणूयउ । सिवंकरि उववणचंचति । सइहि "सुवेयहि णयणाणंदणु । सो सिज्झेसइ एण जि देहें ।
सो सुरसुहुं भुंजिवि पुहईसरु । फणिदत्तहु जणणि वि अहिणामहि । चित्तसेण णरजम्मु पढुक्की । धमित्तावरु भुजियभोग्गहु । सररुहलय चंदण संभूई । को उ दुहुं पाविउ अण्णाणें । उलु सीहु सवरुल्लउ जायउ । परिभ्रमति चुयगहियसरीरइ ।
7. AP देष्पिणु 8 AP मणवेयहि: 9 AP हरिवि। 10. B प्रयहलेण ।
( 20 ) 1. AP संचरंतु 12. AP 31
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की, कलिमल का हरण करनेवाली सुन्दर पूजा की। वहाँ बहुत समय तक निवास कर, अन्त समय संन्यास धारण कर और मस्कर, सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। प्रजा के द्वारा संस्तुत वह वहाँ से च्युत होकर जम्बूद्वीप में विजयार्ध पर्वत के उपवनों से चंचल शिवशंकर नगर में पवनवेग विद्याधर के पुत्र एवं सती सुवेगा के नेत्रों के लिए आनन्ददायक हुआ। अपने स्नेह के कारण उसने चन्दना का अपहरण किया। वह इसी शरीर से मुक्ति को प्राप्त होगा ।
धत्ता - चन्द्रमा के समान तेजवाली, जो नागदत्त की बहिन थी, वह धर्म और व्रतों के फलों के कारण स्वर्ग गयी एवं वहीं मनोवेगा हुई ।
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और जो उसने विद्याधर का वध किया था, वह पृथ्वीश्वर स्वर्ग-सुख भोगकर चेटक राजा हुआ है, यह जानो। तुम नागदत्त की माँ को भी पहिचान लो। विमान से चूकी, जो सुभद्रा थी, वही इस मनुष्य जन्म में चित्रसेना हुई । धनदेव वणिक् भी, और दूसरा धनमित्र भी, जिसमें भोग भोगे जाते हैं ऐसे स्वर्ग में गया। वणिकपुत्री वृषभसेना भी कमललता के समान चन्दना हुई। उसने अपने ही निदान से स्वयं को दण्डित किया । अज्ञान से कौन नहीं दुःख पाता ? जन्म-जन्म में संसरण करता हुआ नकुल सिंह नाम का भील हुआ। इस प्रकार संसार में शरीरों को छोड़ने और ग्रहण करनेवाले संसारी जीव परिभ्रमण करते रहते हैं ।