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________________ 98.18.61 महाकइपुष्फयंतविरवर महापुराणु [345 सो वणियंगु तासु वसु जायउ पयलियरोसु सुठु सुच्छायउ' । धम्मु पवण्णउ भूसिउ खंतिइ वइरु मुएप्पिणु मुउ* उवसंतिइ। कट्टियकेयइ णयरि पइट्टा दविणु ण देंत भाय ते णट्ठा। कण्ण लएप्पिणु अवरु वि पिउधणु कासु होइ किर दाइउ सज्जणु। उज्जेणिहि आउच्छिउ' राएं अण्णु वि आएं सुहिसंधाएं। णायदत्तु तुम्हहि सहुँ गायउ अम्हहुं सो णउ मिलइ वरायउ। तेहिं उत्तु ता तहिं धणमित्तइ सीलदत्तु पुच्छिउ सुहवत्तइ । पत्ता-रिसिणा वत्त पिएण तज्झ तणउ आवेसह। तोमणिगतमांगु पयपणिवाउ करेसइ ॥17॥ (18) इयरु वि तहिं जिणभवणि पइट्टा बाँदेवि जिणवरु थिउ परिउट्ठउ। ता विज्जाहरु एक्कु पराइउ तेण कुमारु 'सणेहें जोइउ। पियहिवमउवयणे संभासिङ । उववणि लयभवणति णिवेसिउ। किउ धमें वच्छल्लु वणीसह जिणपयपंकयपणमियसीसह। णियडगामि णियभवणणिवासिणि ता तहु बहिणि आय पियभासिणि। पभणइ बंधव तुह दायज्जहु दविणसमजणणिम्मलविज्जहु। उसका क्रोध चला गया और वह कान्ति से सम्पन्न हो गया। क्षमा से भूषित उसका धर्म पूरा हो गया। वह शत्रुता छोड़कर शान्तभाव से मृत्यु को प्राप्त हुआ। वे नगर में प्रविष्ट हुए। वे भाई रस्सी खींचकर, धन नहीं देते हुए कन्या और पिता का धन लेकर भाग गये। धन किसका होता है ? इसलिए सज्जन दान में उसे देते हैं। उज्जयिनी में राजा तथा दूसरे सुधीसमूह ने पूछा-नागदत्त तुम लोगों के साथ नहीं आया ? उन्होंने कहा-वह बेचारा हम लोगों से नहीं मिला। शुभवचनवाली धनमित्रा ने शीलगुप्त मुनि से पूछा धत्ता-ऋषि ने प्रिय शब्दों में कहा-तुम्हारा पुत्र आयेगा और जिसका सारा शरीर रोमांचित है, ऐसा वह चरणों में प्रणाम करेगा।" (18) वहाँ दूसरा (नागदत्त) जिनभवन में जिनवर की वन्दना कर सन्तुष्ट बैठ गया। इतने में एक विद्याधर वहाँ आया । उसने कुमार को स्नेहभाव से देखा। प्रिय, हितकारी और कोमल शब्दों में उससे सम्भाषण किया। वह उसे उपवन में एक लताभवन के भीतर ले गया। जिनवर के चरणकमलों में सिर झुकानेवाले उस बनीश नागदत्त के साथ उसने धर्म से वात्सल्यभाव किया। पास ही गाँव में अपने भवन में रहनेवाली प्रियभाषिणी उसकी बहिन आयी। वह बोली-धन कमाने की निर्मल विद्या में कुशल तुम्हारे भागीदार नकुल के लिए कोई 7. AP संजायर। ४. APaप्म. AP घिउ । 10. AP शान्छिय । 11. Jउ सो। 12. AP सुहदंतह । (18) I. AP सिणहें। 2. P कियधमें।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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