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________________ 3441 [98.16.11 महाकइपुष्फयंतविरय महापुराणु घत्ता-ते तिणि वि दायज उल्लंघेप्पिणु सायरु । गय बोहित्यि चडेवि अवलोइउ तं पुरवरु ॥16॥ योहित्यु ५ि ण वहइ थोवंतरि रज्जु विलंबमाणु पइसिवि पुरि। दिट्ठी एक्क कण्ण गुणवंतें पुच्छिय वणिवइतणयमहतें। किं पुरु का तुहं सुहई जणेरी दीसहि भल्लि व कामहु केरी। कहइ किसोयरि रोमंचिज्जा दीवु पलासु एउ जाणिज्जइ। थरु पलासु- महाबलु राणउ कंचणलयवइ इंदसमाणउ। हउं सुय तासु पोमलय वुच्चमि । के दिवसु वि विहवेण ण मुच्चमि । केण वि खबरें मणुयपससिउ रक्खसविज्जइ पुरु विद्धसिङ। अम्हारइ संताणइ जाएं असिमंतेण पासहिउ राएं। चिस केण वि तहु णिसियरविजय णिष्णट्ठाउ खगेसरपुज्जत। तं खंडळ अरिवरसिरखंडउ ण धरिउ जणणे विरहतरंडउ'। मारिउ रक्खसविज्जइ खयरें णावइ मच्छउ गिलियउ मयरें। सुण्ण पट्टणु हउँ थिय सुण्णी अच्छमि तायसोयदुहभिण्णी। ता तं" खग्गु लेवि फणियत्तें हउ रयणीयरु झाइयमतें। धत्ता-वे तीनों भागीदार जहाज में चढ़कर गये और समुद्र पार कर उन्होंने उस नगरवर को देखा। थोड़ी दूरी रह जाने पर उनका जहाज नहीं चला। तब रस्सी डालकर और नगर में प्रवेश कर उन्होंने एक गुणवती कन्या देखी। वणिक्पति के सबसे बड़े लड़के ने पूछा-“यह कौन-सा नगर है, और सुख को उत्पन्न करनेवाली तुम कौन हो ? तुम कामदेव की बरछी के समान दिखाई देती हो।" रोमांचित होती हुई वह कृशोदरी कहती है-'इसे आप पलाशद्वीप जानें। यह पलाशनगर है। इसका राजा महाबल है। कांचनलता का पति जो इन्द्र के समान है, मैं उसकी कन्या पदमलता बोल रही हूँ। मैं किसी भी दिन वैभव से रिक्त नहीं रहती। किसी विद्याधर ने मनुष्यों के द्वारा प्रशंसित इस नगर को राक्षस विद्या से ध्वस्त कर दिया। फिर हमारी ही कुलपरम्परा में उत्पन्न हुए किसी राजा ने मन्त्र के द्वारा एक तलवार सिद्ध की। फिर किसी ने विद्याधरों के द्वारा पूज्य राक्षसी विद्या को (उस तलवार से) नष्ट कर दिया। शत्रु के सिर को काटनेवाली तथा बिरह को तरने के लिए नौका के समान उस तलवार को पिता ने अपने पास नहीं रखा। विद्याधर ने राक्षस विद्या से उसे मार दिया मानो मगर ने मछली को निगल लिया हो। नगर सूना हो गया और मैं भी शून्य रह गयी। अब पिता के शोक से दुःखी मैं यहाँ रहती हूँ।" तब नागदत्त ने वह तलवार ले ली और मन्त्र का ध्यान करते हुए उसने राक्षस को मार दी। घायल शरीरवाला वह उसके वश में हो गया। H.AP द्वाएन। (17) I. ATय महतें। 2. पनासु। 3. P"निखिंडज . AP विहरतरङड। 6. AP थिय हउं। 6. A तें।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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