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________________ 342 | महाकइपुष्फयंतबिरयड महापुराणु 198.15.9 10 15 एयह एह कण्ण दिज्जेसइ बेण्णि वि णवजोवणसंपुण्णई जाम विवाहु होइ णिक्खुत्तर असहियविरहहयासझलक्कई जसहतेण' दुक्खु कयसोएं गउ णियकुलहरु सवहु मयालउ पड़ सावज्जकज्जु किं रइयां णायरणरपरिहासाणासई सहं कताइ तेत्धु णिवसंतें मुणिपुंगमहु सुभोज्जु पयच्छिउँ महुसमयागमि सुठु सदप्पें । कंतइ पइवउ पडिउं पलोइड उयरु बियारिवि मुय पियपेम्में पवरामंतिविसई" उज्जेणिहि । वणि धणाएउ कंतु धणमित्तहि तावरणहिं दिणि ससुरउ भासइ। संजायाई पउरलायण्णई। ता एयह सहवासु ण जुत्तउ। बेण्णि वि विहडियाई णं चक्कई । कहिय मामपुत्ति कयराएं। पायापियरहिं गरहिउ बालउ। कण्णारयणु अदिण्णु जि लइयउं । ता सो थिउ पच्चंतणिवासइ। अज्जबसीले अइउवसंतें। घरिणिइ हियउल्लइ सुसमिच्छिउँ । खद्धउ सो कुमारु वणसप्पें । असिधेणुयहि पाणि परिढोइउ । सयलु वि जीउ णडिज्जइ कम्मे। णयरिहि सोक्खणिवासणिसेणिहि । मरिवि महाबलु कुवलयणेत्तहि। 20 रनेवाले मामा धोषेण ने कान्तपर से अपने भानजे (महाबल) को बलवा लिया। उन दोनों के खेलते हुए बहुत दिन बीत गये, तो राजा के श्रेष्ठ लोगों ने कहा कि इसके लिए यह कन्या दे देनी चाहिए। तब एक दिन मामा कहता है कि दोनों ही नवयौवन से परिपूर्ण और प्रचुर लावण्य से युक्त हो गये हैं। इसलिए जव तक निश्चित रूप से विवाह नहीं हो जाता, तब तक इनका साथ-साथ रहना उचित नहीं है। इस प्रकार विरहरूपी आग की ज्वालाओं को नहीं सह सकनेवाले दोनों को अलग-अलग कर दिया गया, मानो चक्रवाक हों। (वियोग) का दुःख नहीं सहते हुए शोकाकुल प्रेमी महाबल मामा की पुत्री को भगा ले गया। मदयुक्त वह अपनी वधू के साथ अपने कुलगृह गया। माता-पिता ने पुत्र की निन्दा की कि तुमने यह पापकर्म क्यों क्रिया ? तुमने नहीं दी गयी कन्या को क्यों ग्रहण कर लिया ? तब वे नगर के मनुष्यों के परिहास के कारण प्रत्यन्तपर नगर में रहने लगे। अपनी कान्ता के साथ रहते हए अत्यन्त आर्जवशील एवं शान्त स्वभाववाले उसने मुनिश्रेष्ठ को सुन्दर आहार दिया। पत्नी को वह बहुत अच्छा लगा। वसन्त समय आने पर एक सदर्प वनसर्प ने उस कुमार को काट खाया। कान्ता ने पति के शरीर को पड़ा हुआ देखा। उसने छुरी पर अपना हाथ रखा और प्रिय-प्रेम के कारण उससे पेट फाड़कर मर गयी। कर्म के द्वारा सभी जीव नचाये जाते हैं। विशाल अवन्तिदेश की सुखनिवास की नसेनी उज्जयिनी नगरी में धनदेव वणिक् था। महाबल मरकर, कमल के समान नेत्रयानी (पत्नी) धनमित्रा का नागदत्त नाम का पुत्र हुआ। वह अपने सुकवित्व से अत्यन्त विख्यात i. A पगढ़। .AP चिसहियावरहयासमुनुकाई। 7. AP असहतेण तेण जामाएं। 9. P"परिहासोणासए। 10. AP पइ मुओ। 11. AP अवरायांत।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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