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________________ 98.15.8] महाकाइपुष्फयंतविरयज महापुराणु 341 15 चित्तसेण भाएं सहं अच्छा रत्त रमणि किं काई मि पेच्छइ। एह खुद्द रोसेण महेसमि आगामिणि भवि दंडु करेसमि। एपहि पिसुणहि पसरियमायहि वयणविणिग्गयसुयलियवायहि । एव णियाणु णिबद्धउ सेणइ अण्णहिं दिणि गुरुविणयपवीणइ । पत्ता-विप्पामंतणि जाए मुणिवरू भावें भाविउ। सोमिलाइ सिवगुत्तु पढममेव भुंजाविउ ॥14॥ ( 15) कुद्धउ पइ दइयइ संबोहिउ रिसिगुणगणसंकहणुम्मोहिउ । मुउ सिवभूई वंगदेसंतरि कंतणामि रमणीयइ पुरवरि। तहिं सुवण्णवम्महु' तडिलेहहि तणउ महाबलु हुउ वरदेहहि। अंगदेसि चंपापुरवासिहि सिरिसेणहु पत्थिवगुणरासिहि। धणसिरि गेहिणि तहि सोमिल्लय सुय उप्पणी मालाभुयलय'। कणयलया पामें सुहृदाइणि सच्छसहाव णाई मंदाइणि। कंतरराउ सणेहपगामें भाइणेज्जु आवाहिउ मामें। दोहिं मि सहु कीलइ गय वासर ता जपति भवणि णिवणरवर । 5 चित्रसेना द्विजवररूपी आकाश के चन्द्र देवशर्मा नाम के ब्राह्मण को दी गयी। पति के मरने पर कमलदल के समान नेत्रोंवाली वह वैधव्य को प्राप्त हुई। पति के मरने के कारण दूधपीते बच्चों के साथ, उसका पालन भाई ने किया। लेकिन सोमिला ने उससे दुष्ट बात कह दी कि चित्रसेना भाई के साथ रहती है। इससे पति की बहिन का (चित्रसेना का) हृदय छलनी हो गया। प्रेम की अन्धी स्त्री क्या कुछ भी देख पाती है ? 'इस क्षुद्र से मैं प्रतिशोध लूँगी, आगामी भव में कपट करनेवाली और अपने मुख से झूठे शब्द निकालनेवाली इस 'दुष्टा को दण्ड दूंगी।' चित्रसेना ने यह निदान बाँध लिया। दूसरे दिन गुरुओं की विनय में प्रवीण उसने, ___ पत्ता-ब्राह्मणी का आमन्त्रण होने पर, सोमिला ने भावपूर्वक मुनि शिवगुप्त की वन्दना की और उन्हें पहले ही आहार दे दिया। (15) इस पर पति शिवभूति क्रुद्ध हुआ। परन्तु पत्नी ने उसे समझा लिया। ऋषि के गुणसमूह के कथन से उसका मोह दूर कर दिया। शिवभूति मरकर, बंगदेश के अत्यन्त सुन्दर कान्त नामक नगर में उत्पन्न हुआ। वहाँ सुवर्णवर्मा एवं उत्तम देहवाली विद्युल्लेखा का महाबल नाम का पुत्र रहता था। अंगदेश की चम्पापुरी के राजा के गुणों के समूहवाले राजा श्रीषेण की धनश्री गृहिणी थी। सोमिला उसकी माला भुजलतावाली कन्या हुई। शुभ करनेवाली कनकलता के नाम से, स्वच्छ स्वभाववाली जैसे वह मन्दाकिनी नदी हो। अत्यन्त 1. AP "सुललिय'। 5. A सोमिलए। (15) 1. A सुवण्णधम्महो । 2. A' चंपयपुरवासिडि। 8. AP सोमिल सुय । 4. AP उप्पवणी मालइपालाभुय; K मालाभुयलय and gkass मालतीपालायन् मुजलता यस्याः । 5. A अप्पाहिट।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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