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[98.13.16
महाकइपुष्फयंतविरपर महापुराणु दसदिसु पत्त वत्त जयसिरिधव आइय परमाणर्दै बंधव । वंदिउ वीरसामि परमम्मत एयाणेयवियप्पसमप्पउ। घत्ता-जिणपयपंकयमूलि बारहविहु विस्थिण्णउं। चंदणाइ तउ घोरु तहिं तक्खणि पडिवण्णउं ॥1॥
(14) पुणु पुच्छिउ राएं परमेसरु कहइ भडारउ णचजलहरसरू। चंदणगयभवाई' ह्यदुरियई जिणवरधम्ममग्गसंचरियई। मगहरेमि परिहि पिटुणामहि. जासंकिपणादि णीलारामहि। राउ “पयारपुबु तहिं सेणिउ अग्गिभूइ बंभणु परियाणिउ। तासु इट्ट वणिवरसुय बंभणि थणजुएण पियदेहणिसुंभणि ताहि पुत्तु सिवभूट् मणोहर चित्तसेण सुय तुंगपयोहर। सिवभूइहि पिय सोमिल हुई णं रइए संपेसिय दुई। सोमसम्मतणयह सा सुंदर णं मयरद्धयवरमहिहरदरि। दिपणी देवसम्मणामकहु दियवरकुलगयणयलससंकहु । मयइ णाहि सयदलदलणेत्ती चित्तसेण विहवत्तणु पत्ती। पइमरणेण समउं सा डिंभहिं पोसिय भाएं थणयणिसुभहि। सोमिल्लइ पेसण्णउ बोल्लिउं हियवउं पइससाहि संसल्लिउँ ।
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परम आनन्द के साथ आये। उन्होंने एकानेक विकल्पों को परिसमाप्त करनेवाले वीर स्वामी परमात्मा की वन्दना की।
पत्ता-तब जिनवर महावीर के चरणमूल में चन्दना ने बारह प्रकार का विस्तृत घोर तप तत्काल स्वीकार कर लिया।"
फिर राजा ने पूछा और नव जलधर के समान स्वरवाले आदरणीय जिन पापों को नष्ट करनेवाले और जिनवर के धर्ममार्ग में संचरण करनेवाले चन्दना के जन्मान्तरों का कथन करते हैं मगधदेश में नीले उद्यानोंवाली जनसंकुल पृथु नाम ('वत्सा'-उ. प्र.) की नगरी में, प्रकार जिसके पूर्व में है ऐसा श्रेणिक (प्रश्रेणिक) नाम का राजा था। और अग्निभूति नाम का ब्राह्मण जानो। उसकी दो प्रिय पत्नियाँ थों-एक ब्राह्मणी और दूसरी सेट पुत्री। अपने स्तनयुगल से प्रिय की देह का मर्दन करनेवाली उनके क्रमशः सुन्दर शिवभूति पुत्र, और ऊँचे स्तनोंवाली चित्रसेना नाम की पुत्री थी। शिवभूति की पत्नी सोमिला थी, जो मानो रति के द्वारा भेजी गयी दूती हो। वह सोमशर्मा नामक ब्राह्मण की पुत्री थी, जो मानो कामदेव रूपी पहाड़ की घाटी थी। ऐसी
(14) I.AP चंदणमयगया। ५. पवावपत्त। 9 AP
सयदलणेती।