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________________ 98.13.15] महाकइपुष्फतविरयउ महापुराणु [339 (13) धिदुट्टकट्ठाइ रउद्दइ ता दिली सेहिणिइ सुहद्दइ। मुंडिउ सिरु पावइइ पल्लहि आयसणियलु घित्तु णीसल्लाह। कोद्दवकूरु सकंजिउ दिज्जइ णिच्चमेव जा एव दमिज्जइ। ता परमेट्टि छिण्णसंसारउ आयज भिक्खहि वीरु भडारउ । पडिलाहिवि विहीइ किउ भोयणु दिण्णऊं तं तहु सउवीरोयणु। पत्तदाणतरु तक्खणि फलियउ गयणहु कुसुमणियरु परिघुलिया । गज्जिय दुंदुहि बहुमाणिक्कई पडियई भाभारें पइरिक्कई। रयणविचित्तदिण्णविविहंगय देवेहि मि देविहि बंदिय पय। तियसघोसकोलाहलसदें जयजयजयसंजायणिणदें। णमिय मिगावइए लहुयारी बहिणि' सपुत्तई गुणगरुवारी। वणिसुथाइ पाविठ्ठइ जं किउ तो वि ण साहइ विलसिउं विप्पिर । सेट्टिणि सेट्टि बे वि कमणमियड अम्हइं पावई पावें खवियई। परमेसरि तुह सरणु पइट्टई एवहिं परितायहि पाविट्ठई। ता" चंदणए भणिउ को दुजणु को संसारि एत्यु किर सज्जणु। धम्में सब्बु होइ भल्लारउं पावें पुणु जणविप्पियगारउं। 10 15 (13) ढीठ, दुष्ट, कठोर और भयंकर सेठानी सुभद्रा ने उसे देख लिया। उस दुष्टा ने, पाप से रहित और निःशल्य उसका सिर मुड़वा दिया तथा लोहे की बेड़ी डाल दी। काँजी से मिश्रित कोदों का भात उसे दिया जाता था। इस प्रकार नित्य उसका दमन किया जाता था। इसी बीच संसार का नाश करनेवाले आदरणीय वीर भगवान् आहार के लिए आये। उसने (चन्दना ने) पड़गाह कर विधिपूर्वक भोजन बनाया और उसने वह कोदों का भात उन्हें दिया। उसका पात्रदान रूपी वृक्ष तत्काल फल गया। आकाश से पुष्पवृष्टि होने लगी। दुन्दुभि बज उठी। प्रभा के भार से प्रचर माणिक्य रत्न बरसे। देवों ने भी, रत्नों से विचित्र विविधतावाले उसके चरणों की वन्दना की। देवों के कोलाहल के शब्द, तथा जय-जय-जय से उत्पन्न निनाद के साथ मृगावती ने गुणों से महान अपनी छोटी बहिन चन्दना को पुत्र के साथ नमस्कार किया। पापिन सेठानी ने जो कुछ बुरा किया वह उसे भी नहीं कहती। सेठ और सेठानी दोनों उसके पैरों पर गिर पड़े और बोले-'हे देवी ! हम पाप से नष्ट हो गये थे। हे परमेश्वरी ! हम तुम्हारी शरण में हैं। हम पापियों को सन्ताप दीजिए।" तब चन्दना बोली--“कौन इस जग में दुर्जन कहा जाता है और कौन सज्जन ? धर्म से सब कोई भले होते हैं और पाप से सब बुरा करनेवाले होते हैं। दसों दिशाओं में यह बात फैल गयी। विजयलक्ष्मी के पति, उसके भाई . (18) 1. A पावद्दए समिल्लए; P पावइ पम्मिन्नहे। 2. AP पांडेगाहेवि। . A मृगाबह । 4. A विहिणि। 5. A सपुण्णएण गरुयारी; सपुत्तएण गरुपारी। 6. AP तो।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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