SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 338 ] [98.12.5 10 महाकइपुप्फयंतविरय महापुराणु अण्णु वि तह दिण्णइं आहरणई पहवंतइं णं दिणयरकिरणइं। तें तुढें णिय सुंदरि तेत्तहिं भीमसिहरगिरिणियडइ जेत्तहिं। भिल्लु भयंकरिपल्लिहि राणउ णामें सीहु सीहुरसजाणउ। तासु बाल कालेण समप्पिय तेण वि कामालेण विलुपिय। कालोसपणे थिय एग्मेसरि जा लग्गइ वणयरु वणकेसरि। ता सो रुक्खु जेंव उम्मूलिउ सासणदेवयाहिं पडिकूलिउ। रे चिलाय करु सुयहि म ढोयहि । अप्पउं कालवयणि म णिवायहि । ता सो तसिउ थक्कु तुहिक्कउ पयजुयवडिउ' वियारविमुक्कउ । कंदमूलफलदावियसायइ पोसिय देवि णिसायहु मायइ। थिय कइवय दिणाई तहिं जइयहुं वच्छदेसि कोसंबिहि तइयहुं। वसहसेणु वणिवइ धणइत्तउ मित्तवीरु तहु किंकरु भत्तउ। मित्तु सो ज्जि सीहहु वणणाहहु घरु आयउ सुक्कियजलवाहहु । अप्पिय तासु तेण पत्थिवसुय बालमुणालवलयकोमलमुय। ढोइय वणि कुलगयणससंकहु भिच्चे वसहसेणणामकहु। वत्ता-एक्कहि वासरि जांब जोइवि सेहि तिसाइट। बंधिवि कोंतल ताइ जलभिंगारुच्चाइउ ||12|| 15 20 बताये और उसे प्रभा से युक्त आभूषण दिये, मानो वे सूर्य की किरणें हों। सन्तुष्ट होकर वह सुन्दरी को वहाँ ले गया जहाँ भीमशिखर गिरि के निकट, भयंकरी नामक गाँव था, जहाँ मदिरा का स्वाद जाननेवाला, सिंह नाम का भील राजा रहता था। कालू ने उसे बाला सौंप दी। काम से व्याकुल उसने भी उसके साथ कुचेष्टा करनी चाही। वह परमेश्वरी कायोत्सर्ग में स्थित हो गयी। जब तक वनसिंह वह भीलराज उससे लगता है, तब तक शासन देवियों ने उसे प्रतिकूलित कर दिया और वृक्ष की तरह उखाड़ दिया (और कहा)"हे भील ! तू कुमारी पर हाथ मत डाल। अपने को काल के मुख में मत फेंक।" तब वह डरकर चुप हो गया और विकारमुक्त होकर उन दोनों के पैरों में पड़ गया। कन्दमूल और फलों का स्वाद दिलाती उस भील की माँ ने उसका पालन-पोषण किया। वह कुछ दिन वहाँ रहती है कि इतने में वत्सदेश की (नगरी) कौशाम्बी का धनाध्य सेट वृषभसेन और उसका मित्रवीर एक भक्त अनुचर जो वनराज सिंह का भी मित्र था, उस भील के घर आया। उसने बालमृणालिनी की तरह कोमल बाहुवाली वह राजकन्या उसे सौंप दी। उस अनुचर ने वह कन्या अपने कुलरूपी आकाश के चन्द्र वृषभ नाम के सेठ को दे दी। घत्ता-एक दिन जब सेट को प्यासा देखकर, अपने बाल बाँधकर उसने जलभिंगार (जलपात्र) ऊँचा किया, 2. A अयर। 3. A सौहासजाणार; सीहरसु जाणउ । 1. AP"जुबपडिउ। 5. AP चिलायहो। 6. AP तेण तासु ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy