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98.12.4 |
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महाकइपुप्फवंतविरयउ महापुराणु
ताहि सुखंतिहि पासि' णिहालिउ सहु सम्मत्तें चारुगुणडुइ सोवण्णाess पुरि मणवेयउ आयउ उववणि णिच्चवसंत पिययघरिणि णियदेह थवेष्पिणु सो जा गच्छइ पुणु' णियभवणहु अवयरति आहासइ वइयरु तुज्यु विज्ज कयरोसणिहाएं एवहिं किं कुमारि पई- चालिय णिच्चमेव हियवइ संकंतहि
चंदग्गाइ सावयवउ पालिउं । दाहिणसेढिहि गिरिवेयडुइ । विहरमाणु हि घरिणिसमेयउ । दिट्ठी चंदण चंदणवंत | आपणुक एप्पिणु । आलोयणिय दिट्ठ ता गयणहु । देवि तुहुं जाणिउ मायायरु । ताडिय देवय वामें पाएं। अच्छइ कोवजलणपज्जालिय" । तं णिसुणिवि सो भीयउ " कंतहि ।
धत्ता - भूयरमणवणमज्झि पवरइरावइतीरइ | साहिय तेण खगेण विज्ज फणीसरकेरइ ||11| ( 12 )
पत्तलहुय' णामेण णिहित्ती पंचक्खर चित्ति णिज्झाय वियलिय णिसि उग्गमिउ पयंगज णा कालु तासु जिणवयणई
ताइ पुत्ति संपत्त धरिती । धम्मझाणु निम्मलु उप्पायर 1 वय एक्कु पत्तु सामंगल | साहियाई मुद्धइ जगसयणई ।
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उपवन
है और तुम कामदेव हो । चन्दना ने भी उन्हीं यशोवती आर्यिका के पास सम्यक्त्व के साथ सुन्दर श्रावक व्रत ग्रहण कर लिये । गुणाढ्य विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के स्वर्णाभ नगर का विद्याधर राजा मदनवेग अपनी पत्नी सहित आकाश में भ्रमण करता हुआ नित्यवसन्त नाम 'आया। अपनी स्त्री को स्थापित कर तथा कन्या को लेकर और वापस आकर, जैसे ही अपने घर के लिए जाता है, तब आकाश से विद्याधरी ने उसे देख लिया । आकाश से नीचे उतरते हुए वह पति से कहती है कि विद्या से मैंने मायावी तुम्हें और तुम्हारी विद्या को जान लिया है। उसने क्रोध से आघात करनेवाले पैर से देवी को प्रताड़ित किया। इस समय कुमारी को तुमने क्यों चलाया ? वह क्रोधाग्नि से प्रज्वलित है।" यह सुनकर प्रतिदिन अपने मन में शंका करनेवाली पत्नी से वह विद्याधर डर गया ।
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घत्ता - विशाल ऐरावती नदी के किनारे, भूतरमण वन के भीतर, धरणेन्द्र की आज्ञा से उस विद्याधर ने
4. AP || 5 A सोचण्णए पुरि सुरमणयंवर। 6 A णियगेहि 7. AP कर । B. P देखिए। 9. P पज्जलिय । 10. AP भीयउ सो । ( 12 ) | AP पण्णलहु K पत्तलक्ष्य and gloss साहिय विज्ज पर्णलघुनामेति पूर्वेण सम्बन्धः ।
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पर्णलघ्वी विद्या के सहारे उसे फेंक दिया। उस विद्या से वह ( चन्दना ) धरती पर आ गयी। यह पंच-नमस्कार मन्त्र का ध्यान करती है और निर्मल धर्मध्यान को उत्पन्न करती हैं। रात बीतती है और सूर्य निकलता है । वहाँ एक श्यामशरीर भील आया। उसका नाम कालू था । उस मुग्धा ने उसे जग के स्वजन जिनवचन