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महाकइपुष्फयंतविरयड महापुराणु
[82.13.9
धणदेउ धणपालु
अण्णेक्कु विणपालु। सुउ देवपालंकु
जिणधम्मि णीसंकु। पुणु अरुहदत्तो वि सिसु अरुहदासो वि। दिणयत्तु पियमित्तु संपुण्णससिवत्तु। धम्मरुइजुत्तेहिं
वणि णवहिं पुत्तेहि। णं णवपपत्थेहिं
पसरंतगंथेहि। परमागमो सहइ
रूढिं पर वहइ। पियदंस
जेडा वि 'गुणजुत्ति। धत्ता-णाणातरुसंताणहु गउ महिवइ उज्जाणहु।
सेट्टि वि पुस्तकलत्तहिं सहुं कयभत्तिपयत्तहिं ॥3॥
तहिं वंदिवि मुणि मंदिरथविरु' दढरहहु समप्पिवि धरणियलु मेहरहें संजमु पालियउ वणि जायउ रिसि सहं गंदणहिं मयकामकोहविद्धसणहि णंदयस सुणिव्वेएं लइय
णिसुणेवि अहिंसाधम्मु चिरु। हियउल्लउं 'सुछ करिवि विमलु । अरि मित्तु वि सरिसु णिहालियउ । मणि' मण्णिय समतिणकंचणहि' । खंतियहि समीवि सुणंदणहि। पियदसण जेट्ट वि पावइय।
धनदेव, धनपाल, एक और दिनपाल, और देवपाल नाम के पुत्र थे जो जैनधर्म में अत्यन्त निःशंक थे। फिर अरुहदत्त और अरुहदास । दिनदत्त और पूर्णशशि के समान मुखवाला प्रियमित्र और धर्म रुचि। अपने इन पुत्रों के साथ वह सेठ ऐसा मालूम होता था, मानो प्रसरित ग्रन्थ (धन और शास्त्र) वाले नौ पदार्थों से सहित परमागम रूढ़ि को प्राप्त है। उसकी दो गुणवती पुत्रियाँ थीं-प्रियदर्शना और सुज्येष्ठा। __ घत्ता-(एक दिन) राजा नाना वृक्षों की पंक्तियों से युक्त उद्यान में गया। सेठ भी भक्ति के लिए प्रयत्न करनेवाले पुत्रों के साथ वहाँ गया।
वहाँ मन्दिर स्वरूप मुनि की वन्दना कर और बहुत समय तक अहिंसा धर्म सुनकर, दृढ़रथ (पुत्र) को धरतीतल (राज्य) सौंपकर तथा अपने हृदय को पवित्र बनाकर मेघरथ राजा ने संयम का पालन किया। उसने शत्रु और मित्र को समान समझा। सेठ भी तृण और स्वर्ण को मन में समान माननेवाले अपने पुत्रों के साथ मुनि हो गया। नन्दयशा बहुत ही निर्वेद (खेद) को प्राप्त हुई। प्रियदर्शना और ज्येष्ठा ने भी प्रव्रज्या ग्रहण
1. जिणपाजु । 8 । जिणवत्त। . : "सचिनत्तु। 10. 5 यणि वाहें। 11. P% गुणगुत्ति ।
(14) 1. पविरु। 2. AL' करेवि सुद्ध विफल। 3. ABS मणपणिय | 4. ABP -तण-
"तिणु। 5. A पंदयसि । 6. B घियदलणि।