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महाकइपुष्फयंतविरयड महापुराणु
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तुह' पेसणेण अहणिसु गममि तुर्ह जिह तिह हउँ णग्गउ भममि। गुरुणा तहु कम्मु णिरिक्खियउं दिण्णउं वउं सत्यु वि सिक्खियउं । कालें जंतें समभावि थिन हुहुउ सो सिरिगोनम लोगपिउ । मज्झिमगेवजहि
उवरिल्लविमाणइ जाउ सुरु। सो तहि मरेचि
अट्ठावीसहिं सायरहिं चुउ। इह जायउ अंधकविहि तुहं दिउ रुद्ददत्तु अणुहविवि दुई। घत्ता-अणुहुजियबहुकम्मई आयपिणवि णियजम्मई। पुणु तणुरुहहं भवावलि पुच्छिउ राएं केवलि ॥12॥
(13) जणसवणसुहे' जणइ ता जिणवरो भणइ। इह भरहवरिसम्मि
वरमलयदेसम्मि। भद्दिलपुरे राउ
मेहरहु विक्खाउ। णीरुयसरीरस्स'
रायाणिया तस्स। णं अच्छा का वि भद्दा 'महादेवि। पाडियगुरुविणउ
दढसंदणों तणउ। अरविंददलणेत्तु
चणिवरु वि धणयत्तु । णंदयस तहु घरिणि णयणेहि जियहरिणि।
हैं, उसी प्रकार मैं भी नग्न दीक्षा लेकर घूमूंगा।" गुरु ने उसके आचरण को देखा और उसे व्रत दिये तथा शास्त्र भी सिखाया। समय बीतने पर वह समता भाव में स्थित हो गया और इस प्रकार गौतम मुनि खूब लोकप्रिय हुआ। उसके गुरु समुद्रसेन मध्यम ग्रैवेयक के ऊपर के विमान में देव रूप में उत्पन्न हुए। वह भी (गौतम भी) वहाँ जाकर अहमेन्द्र हुआ और अठारह सागर (आयु) के बाद च्युत होकर, यह तू अन्धकवृष्णि उत्पन्न हुआ। हे रुद्रदत्त ! तू इस प्रकार के दुःखों को भोग कर--
यत्ता-इस प्रकार अनेक (तरह के कर्मों का अनुभव करनेवाले अपने पूर्वजन्मों को सुनकर राजा ने केवली से अपने पुत्रों के जन्मान्तर पूछे ।
(13) तब जिनवर लोगों के कानों को सुख देने वाले ऐसे वचन कहते हैं-इस भारत के श्रेष्ठ मलय देश के भद्रिलपुर का राजा मेघरथ बहुत विख्यात था। आरोग्यसम्पन्न उस राजा की भद्रा नाम की रानी थी, जैसे कोई अप्सरा हो। उसका महान् विनय प्रकट करनेवाला दृढ़रथ नाम का पुत्र था। वहीं अरविन्ददल के समान नेत्रवाला वणिग्वर धनदत्त भी रहता था। उसकी पत्नी नन्दयशा अपने नेत्रों से हरिणी को जीतनेवाली थी।
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तुर। 1. AP रिसि गोतभु। 5. APS ता जि मरेवि! 6. P इय। (13) 1. AP जं मवण । 2. 5 वरमि . Pणिरुवमसरीरस्स। 4. AP महाएवि। 5. AS दढदंसणो। 6. APS Jटजस।