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________________ 30] महाकइपुष्फयतविरयउ महापुराणु [82.11.3 णीसेसु वि पलयहु गयउं कुलु थिउ देहमेत्तु पाविळु खलु। मलपडलविलित्तु भुत्तविहुरु जूयासहाससंकुलचिहुरु'। मसिकसणवण्णु "जरचीरधरु आहिँडइ घरि घरि देहिसरू। जणिदिउ खप्परखंडकरु महिवालु व चल्लइ दंडधरु। दुई गाहिं हम आइ . . मुक्साइ लमियलोयणु पडइ । दुग्गउ" दूहउ दुग्गंधतणु | रसवसलोहियपवहंतवणु। तें पुरि पइसंतु सुद्धचरिउ दिउ समुद्दसेणायरिउ12 1 तहु मग्गेण जि सो चलियउ जाणिवि सुहकमें पेल्लियउ। घत्ता-पयडियपासुलियालउ दुइंसणु वियरालउ। वणिवरणारिहिं 4 दिट्ठउ णं दुक्कालु पइट्ठउ ||11॥ (12) पडिगाहिउ' रिसि वइसवणघरि आहारु दिण्णु सुविसुद्ध करि। मुणिचटु भणिवि हक्कारियउ रंकु वि तेत्थु जि वइसारियउ। भोयणु आकंछु तेण गसिउं णियचित्ति रिसित्तु जि अहिलसिउं। गउ गुरुपंथेण जि गुरुभवणु सो भासइ पेट्टालग्गहणु। 10 वह दुष्ट पापी देहमात्र रह गया। मल-समूह से लिपटा, भोगों से रहित, सैकड़ों लुओं से युक्त संकुल केशवाला, स्याही के समान कृष्णवर्ण, जीर्ण वस्त्र पहिने हुए, और 'दो' यह शब्द कहता हुआ वह घर-घर घूमने लगा। लोगों के द्वारा निन्दित, खप्पर का टुकड़ा तथा दण्ड हाथ में लिये हुए सजा की तरह चला। नगर के बच्चों के द्वारा बह मारा जाता, तब चिल्लाता। भूख के कारण आँखें घुमाते हुए वह गिर पड़ता। उसके सुर्गत-दुर्भग और दुर्गन्धित शरीर के घावों से रस पीप और खून बहने लगा। नगर में प्रवेश करते हुए उसने विशुद्धचरित समुद्रसेन आचार्य को देखा। वह शुभ कर्मों से प्रेरित यह जानकर, उसी रास्ते से चला। पत्ता-उसकी पसलियों की हड्डियाँ निकल रही थीं। अत्यन्त विकराल और दुदर्शनीय उसे वणिकवरों की स्त्रियों ने इस प्रकार देखा मानो दुष्काल ही प्रवेश कर रहा हो। (12) वैश्रवण के घर में मुनिवर को पड़गाहा गया और उनके विशुद्ध हाथों में आहार दिया गया। उसे भी मुनि का शिष्य कहकर बुलाया गया और उस गरीब को भी वहीं बैठाया गया। उसने गले तक खूब भोजन किया और अपने मन में मुनि बनने की इच्छा प्रकट की। वह महामुनि के रास्ते उनके भवन पर पहुंचा। उसका पेट दाढ़ी से लग रहा था। वह कहता है-'मैं दिन-रात तुम्हारी सेवा में रहूँगा। जिस प्रकार आप भायणु; 'लायण। 10. PS दोग्गज । 11. S दूहब्रु। 12. P5 °सेणाइरिज। 5. B"चलितु । 5. BP भुत्तु विहरु । 7. B"संकुलियसिरु । 8. 5 जरजीर । 9. 13. 2 पायडिय। 14. Bवणे। (12) 1. P5 पडिलाहिउ । 2. B मणि ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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