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________________ 3341 महाकपुप्फयंतविरयउ महापुराणु [98.9.3 देवि 'अखुद्द सुहृद्द महासइ। सुहयत्तउ हरियत्तु णियंगउ अवरु पहंजणु पुत्तु पहासउ। चेडल णाम णरेसरु णिवसइ धणयत्तत्र धणभदु उविंदउ कभोयउ कंपणउ पयंग' धीयउ सत्त रूविण्णासउ। सेयंसिणि सूहव पियकारिणि सुप्पह देवि पहावइ चेलिणि जे विसिट्ठ भडारी चंदण पियकारिणि वरणाहकुलेसहु" दिपण सयाणीयस्स मिगावइ सूरवंसजायहु ससियरणह उद्दायणहु पहावइ राणी महिउरि कामबाणपरिहट्ठउ जेट्टहि कारणि सच्चइ णामें गट्ठउ आहवि चेडयरायहु अइदूसहणिब्वेएं लइयउ अण्णहिं दिणि चित्तयरें लिहियई अवर मिगावई जणमणहारिणि । बालमराललीलगइगामिणि । रूवरिद्धिरंजियसंकंदण"। सिद्धत्वहु कुंडउरणरेसहु। सोमवंसरायहु मंथरगइ। दसरहरायहु दिण्णी सुप्पह। दिपणी उज्यामागी"। अलहमाणु अवरु वि आरुट्ठउ। आयउ जुज्झहुँ दुप्परिणामें। को सक्कइ करवालणिहायहु। दमयरमुणिहि' पासि पव्वइयउ । रूवई "बहुपट्टतरणिहियई। 15 अपनी गृहश्री से इन्द्र के भवनों को पराजित करनेवाले वैशाली पुरवर में चेटक नाम का नरेश्वर निवास करता था। उसकी उदार सुभद्रा नाम की महासती देवी थी। उसके धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, शुभदत्त, हरिदत्तं (सिंहभद्र), कामदेव, कम्भोज, कम्पन, पतंग, प्रभंजन और प्रभास पुत्र थे। रूप की रचना सात कन्याएँ थीं। कल्याण करनेवाली प्रियकारिणी, जन-मन का हरण करनेवाली एक अन्य मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती और बाल मराल लीला की गति से चलनेवाली चेलना। ज्येष्ठा और अपनी रूपऋद्धि से इन्द्र को रंजित करनेवाली विशिष्ट आदरणीया चन्दना थी। इनमें प्रियकारिणी श्रेष्ठ नाथकुल के ईश कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ को दी गयी थी। सोमवंश के राजा शतानीक को मन्थरगामिनी मृगावती दी गयी थी। चन्द्रमा के समान नखवाली सुप्रभा सूर्यवंश में उत्पन्न दशरथ राजा को दी गयी थी। उर्वशी और रम्भा के समान प्रभावती रानी उदयन को दी गयी थी। कामबाणों से भ्रष्ट होकर ज्येष्ठा को न पाकर एक और राजा क्रुद्ध हो उठा। ज्येष्ठा के लिए दष्परिणामवाला सत्यक नाम का राजा युद्ध करने के लिए आया। युद्ध में वह चेटक राजा से नष्ट हो गया। तलवारों के आघात को कौन सहन कर सकता है ? उसे दुस्सह वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने दमवर मुनि के पास जाकर वैराग्य ग्रहण कर लिया। एक दिन चित्रकार के द्वारा लिखित अनेक पक्षकों में निहित, जिनसे I. A खुद्द व सुद्ध।. धणहन्दु AP गियंदउ । H. AP कुंभवत्तु। 7.APuld after this : जाय तहे कम्मेण ( कमेण) ललियंग। ४. मृगाथइ । 9. • जिद्ध। 1. AP "सकंदण। 10. वरणायकुलेसहो। 11. A मृगावद। 12. A ससहरहा है ससहरणह। 18. AP "उबसि । 4. AP दमवर । 15. AP पानइयउ।।6. AP बरपट्टतरे।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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