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98.10.7]
महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
कामविलासविसेसुप्पात्तहि पडिउ बिंदु चेलिणिऊरूयति ताएं तोंडु कय ं विवरेरडं एएं विणु पडिबिंबु ण सोहइ ता दिट्ठउ तहि लंछणु एयइ पत्ता - ता संरुडु णरिंदु गउ जिणपडिबिंबहं पासि पडु संणिहिउ श्रवणालइ ॥ 9 ॥
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दिउ पडु' पई पुच्छ्रिय किंकर एयई लिहियां विणयविणीयइं चहुं विवाह हुयउ विहुरंतउ अज्ज बि पि दिति ण का तें वयणेण मयणसरवणियउ हा हा हे कुमार तुह तायहु चेडयधीयहि अइआसत्तउ
जोइयाई राएं णियपुत्तिहि । दिउ कयलीकंदलकोमलि । चित्तयरें बोल्लिउ सुइसारउ । धाइ जाम ऊरुत्यलु चाहइ । अक्खउ राहु जायविवेयइ । रायहरहु लीलइ ।
17. A संतु । 18. P उबगालए (10) 1 AP प पडु 2. जोन
तेहिं पवृत्तउं वइरिभयंकर । बिंबई चेडयमहिवइधीयहं । तीहिं मज्झि दो जोव्वणवंतउ । एक काम लहुई अलकनरवि । तुहुं तुह मंतिहिं तुह सुउ भणियउ । वड कामावत्य सरायहु । सूरु व दिडिगम्मु अइरतउ ।
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कामविलास विशेष की उत्पत्ति है, ऐसी अपनी पुत्रियों के रूपों को राजा देखने लगा । केले के कंदल के समान कोमल चेलना के जाँघतल पर पड़ा हुआ बिन्दु उसे दिखाई दिया। पिता ने अपना मुँह टेढ़ा कर लिया । चित्रकार ने श्रुतिश्रेष्ठ यह बात कही कि इस (बिन्दु) के बिना प्रतिबिम्ब शोभा नहीं देता। जब धाय उस कन्या की जाँघ को देखती है, तो उसने वहाँ चिह्न देखा - विवेकशील उसने राजा से यह कहा ।
पत्ता- तब राजा क्रुद्ध हो गया। चित्रकार राजगृह से चला गया । वनालय में उसने जिन - प्रतिबिम्बों के पास चित्रपट को रख दिया।
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तुमने पट देखा और अनुचरों से पूछा। उन्होंने बताया कि वे शत्रुओं के लिए भयंकर, हे राजन् ! चेटक राजा की कन्याओं के विनयविनीत चित्र लिखे गये हैं। इनमें चार का दुःख का नाश करनेवाला विवाह हो गया। (शेष) तोन में दो यौवनवती हैं। हे राजन् ! जो आज भी किसी को नहीं दी गयीं। हे शत्रुरूपी अन्धकार के लिए सूर्य, एक कन्या छोटी है। इन शब्दों से तुम कामदेव के तीरों से घायल हो गये। तब तुम्हारे मन्त्रियों ने तुम्हारे पुत्र से कहा कि हे कुमार! तुम्हारे सरागी पिता की कामावस्था बढ़ रही है। वह चेटक की कन्या में अत्यन्त आसक्त हैं। प्रभात के सूर्य के समान वे उसमें अत्यन्त अनुरक्त हैं, परन्तु वृद्धावस्था होने के