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________________ 330 ] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु एत्थु णयरि णरयहु जाएसइ चिरु गरु होतउ पुणु परु जायउ घत्ता - सो सुमरवि चिरजम्मु चिंतामणि पाविट्टु पुण्णु पाउ कहिं जीवहं ॥5॥ ( 6 ) सालि ण होइ कंगु महिववियउ गद्दहु गहु माणुसु माणुसु एव जाइवाएं सो पडियउ सत्तमयहु दूरीकचविरयहु रायरोसदोसोहपवत्तणु पियइ मज्जु परजीविउ हिंसइ सेणियणिवइकुलालंकारें हउं किं होंत चिरजम्मंतरि होतउ आसि विप्पु तुहुं सुंदरु सो साबउ बिण्णि व ते सहयर अवरु को वि किं णउ जइ भासइ । पायें अवरहि जोणिहि पायउ । उज्झियणाणपईवहं । किं जिणेण जणवउ संतवियउ । होइ ण अवरु को' वि दुक्कियवसु । अइदुद्दते कम्मे घडियउ । जाएसइ तमतमपहणरयहु । असहावत्तु पत्तु महिलत्तणु । छट्टी महि णिग्धिणु पइसेसइ । रिसि परिपुच्छिउ अभयकुमारें । भाइ भडारउ इह चरिसंतरि । अवरु वि लंघियगिरिदरिकंदरु । जरकंथाकरंककड्डियकर । [ 98.5.16 5 5. AP सुअरेवि । 6. AP चिंताइ मणे पाविउ पुष्णु पाउ कह जीवहं । ( 6 ) 1.AP किं पिं। 2. P जामुवाएं। 3. P दोसाह" A "नृबई'। 5. A परिउच्छिउ 6. AP वि जण सहचर 10 नरक में जाएगा ?" मुनि कहते हैं-"जो काल सौकरिक (दूसरा नाम चिन्तामणि) पहले मनुष्य था, वह फिर मनुष्य हुआ। पाप से भी वह दूसरी योनि में नहीं गया। घत्ता - अपने चिरजन्म की याद कर वह पापिष्ठ ( चिन्तामणि ) ( सोचता है ) – ज्ञानरूपी प्रदीप से रहित जीवों के लिए पुण्य-पाप कैसा ? ( अर्थात् पुण्य-पाप का विचार ज्ञानियों के लिए है) । (6) धरती में बोया गया उत्तम धान्य कंगु ( कोदो) नहीं हो सकता। फिर, जिन भगवान् के द्वारा जनपद के सन्तप्त होने का क्या प्रश्न है ? गधा गधा है, मनुष्य मनुष्य है। पाप के वंश से जीव कुछ और नहीं होता। इस प्रकार जातिवाद से प्रतारित और अत्यन्त दुर्दान्त कर्म से घटित वह पुण्यों से अत्यन्त दूर तमतमः प्रभा नामक सातवें नरक में जाएगा। राग, क्रोध और दोषों के समूह का प्रवर्तन करनेवाली अशुभ पात्र स्त्रीत्व को वह प्राप्त हुआ। वह मद्य पीती है, दूसरे जीवों की हिंसा करती है, वह छठे नरक में प्रवेश करेगी।" तब राजा श्रेणिक के कुलालंकार अभयकुमार ने मुनि से पूछा कि पूर्वजन्म में मैं क्या था ? आदरणीय बताते हैं कि तुम इस भारतवर्ष में सुन्दर ब्राह्मण थे; और एक और दूसरा, जिसने पहाड़ों की घाटियों और गुफाओं को पार किया वह श्रावक था। तुम दोनों मित्र थे। जीर्ण-वस्त्र और भिक्षापात्र हाथ में लिये हुए, दुःसह
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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