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________________ 328 ) महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [98.4.1 सूरवीरु सावउ संजायउ जाणवि' अरुहधम्मु णिम्मायउ। दोसायरई भुत्तसुहसायउ खयरसारु' सो' सग्गहु आयउ । एव बप्प सो पुण्णु चिरायउ इह पुणु मगहदेसि संजायउ। पुरि रायह' हरि लच्छिसहायहु सिरिमइदेविहि कूणियरायहु। उप्पण्णउ सुउ सेणिय णा रूवें तुहं जि कामु कि कामें। ताएं कुलसिरिजोग्गउ जाणिउ मायाकलहें णिलयहु णीणिउ। जिह पायडणरु" तिह अवगणिउ णंदिगामलोएं णउ मण्णिउ । विप्में सहुँ गओ सि देसंतरु जाइदेवपासंडकहतरु। णिसुणमाणु" मिच्छत्तमलीमसु तुहं जाओ सि सकम्मपरब्बसु। बंभणेण तुह बहुसुहभायण णियसुय दिण्णी सिसुमिगलोयण' । ताहि पुत्तु पइ जायउ केहउ बुद्धिइ सुंदरु सुरगुरु जेहउ। पुणु णरणाहें णेहु वहतें कोक्किउ तुहं णियरज्जु मुयंतें। घत्ता–पुरु सीहासणु छत्तु दिण्णई15 अइअणुराएं। जयजयसदें तुन्झु पटु णिबद्धउ ताएं ॥4॥ 10 वह शूरवीर अहंन्तधर्म को माया रहित समझकर श्रावक हो गया। दो सागर पर्यन्त सुखों का आस्वादन कर वह खदिरसागर भील स्वर्ग से आ गया। हे सभट । वह पण्यात्मा भील फिर यहाँ मगधदेश में उत्पन्न हुआ। राजगृह में जिसकी लक्ष्मी सहायक है, ऐसे राजा कुणिक और श्रीमती देवी से उत्पन्न श्रेणिक नाम के पुत्र तुम हो। रूप में तुम काम (देव जैसे) हो। कामदेव से क्या ? पिता ने तुम्हें कुललक्ष्मी के योग्य समझा, इसलिए झूठ-मूठ की लड़ाई करके तुम्हें घर से निकाल दिया। एक सामान्य मनुष्य की तरह तुम्हारा अपमान किया। नन्दीग्राम के लोगों ने तुम्हें नहीं माना। एक ब्राह्मण के साथ तुम देशान्तर चले गये। वहाँ जाति और देव सम्बन्धी पाखण्डपूर्ण कथाओं को सुनते हुए, अपने कर्म के वशीभूत तुम मिथ्यात्व से मलिन हो गये। ब्राह्मण ने तुम्हें, अनेक सुखों की भाजन शिशुमृगनयनी कन्या दे दी। हे पुत्र ! तुम उसके पति उस प्रकार हो गये, जिस प्रकार बुद्धि से बृहस्पति सुन्दर हो जाता है। फिर, स्नेह धारण करते हुए राजा .. ने राज्य का परित्याग करते हुए तुम्हें बुलाया। पत्ता-फिर अत्यन्त अनुराग से सिंहासन और छत्र दिया। और पिता ने जय-जय शब्द के साथ तुम्हें राजपट्ट बाँध दिया। (4) 1. AP जाणेवि। 2. Padds after this एत्तहि सुरु पुणणावसु जायउ। 3. खइरसारु। 4. AP सोहम्महो। 5. AF omits this foot. 7. A omits this foot ४. A रायहरे। 9. A सुरु। 10. A पाइयणरु। 11. P पासंडिकाँतरू। 12. AP णिसुणि माणु। IS AP भावणि। 14. AP सिसुपिगलोचणि। AP दिग्णउं।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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