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________________ 98.3.12) महाकइपष्फयंतांवरया महापुराणु [ 327 घत्ता--ता तें जक्खिपवंचु तहु भासिउ णीसेसु। तं णिसुणिवि णियचित्ते आणदिउ सवरेसु ॥2॥ (3) सव्वमासपरिचाउ करेप्पिणु ___मुउ मुणिवयणु सइति' धरेप्पिणु। हुउ सोहम्मि देउ 'रुणिम्मलु किं वणिज्जइ जिणधम्महु फलु। दुक्खिउ सूरवोरु संजायउ भीसणु तं काणणु पडिआयउ । पुच्छ्यि जक्खि तेण सयणुल्लउ सो अम्हारउ वयविहि भल्लउ । मुउ तुह पिउ' किं हुयउ ण हूयउ भणु परमेसरि णिरुवमरूयउ। अक्खइ 'जक्खिणि किं अखिज्जइ मझु कलेवरु विरहें झिज्जई। बुक्कणपलपरिहरणु सुहावउ किर होसइ महुं पीणियभावउ। णवर मई वि तुह मंत् पयासिउ अपण अप्पउं झत्ति विणासिउ। सव्वीवजंगलपरिचाएं समकिउ गुरुपुण्णणिहाएं। सो सोहम्मि वाहु उप्पण्णउ अणिमाइहिं गुणेहिं संपण्ण। घत्ता-ता समाहिगुत्तस्स पासि गपि भिल्लेण।। सयल' वि मासणिवित्ति गहिय सुणीसल्लेण ॥७॥ घता-और तब उसने उस यक्षिणी के प्रपंच को उससे कहा। यह सुनकर भीलराज अपने मन में प्रसन्न हुआ। (3) सब प्रकार के मांस का परित्याग कर, वह अपने मन में मुनि के वचनों को धारण कर मर गया। सौधर्म स्वर्ग में कान्ति से निर्मल देव हुआ। जिनधर्म के फल का क्या कथन किया जाये, शूरवीर साला बहुत दुःखी हुआ। वह उस भीषण वन में लौटा। उसने यक्षिणी से पूछा- "व्रत करनेवाला हमारा वह भला सम्बन्धी मर गया है, सुन्दर रूपवाला वह तुम्हारा पति हुआ या नहीं, हे परमेश्वरी ! बताइए।" वह यक्षिणी कहती है-"क्या कहा जाए ? मेरा शरीर विरह में जल रहा है। कौए के मांस का त्याग करनेवाला, सुखदायक वह मेरा प्रीतिजनक कैसे होगा ? और उल्टे मैंने तुमसे यह रहस्य प्रकट कर स्वयं अपना शीघ्र नाश कर लिया। जिसमें समस्त जीवों के मांस का परित्याग कर दिया गया है, ऐसे महान् पुण्य के समूह से अलंकृत वह भील सौधर्म स्वर्ग में अणिमादि ऋद्धियों से सम्पन्न देव उत्पन्न हुआ है।" पत्ता-तब वह भील समाधिगुप्त मुनि के पास गया और निःशल्य होकर उसने सब प्रकार से मांस-निवृत्ति का व्रत ग्रहण कर लिया। (3) 1. AP सुइत्ति। 2. Aणिरु णिमलु। ::. A ग्रिड । 4. A? जक्खि काई अक्खिज्जइ। 5. AP खिलइ । क. PENSITA सयलपासणिवित्ति।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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