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महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
घत्ता - तं णिसुणिवि सवरेण उच्चाइउ वयभारु । मुक्कउ जीविउ जाव वायसमासाहारु ॥1॥
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आयडियबहुघडियामालें तहु सरीरु रोएं आसोसिउ कायमासु भक्खिउं ण चिलाएं आहूय तहु केरउ सालउ सूरवीरणायें आवंतें' णिसुय तेण कामिणि शेवंती ग पुच्छ्रिय सा झत्ति विलासिणि कहइ नियंबिणि इह हउं जक्खिणि जासु "मुदिहिं संबोहिय मइ रिट्झ्यपलणिवित्तिफलसारें पई जाइवि वयभंगु करेव्वउ तं णिसुणिवि गउ तुरिउ वणेयरु पत्थिउ मेहुणेण णिरु णेहें केव वि गहियउं वउ ण वि भग्गजं
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परिवह्नतें दी। कालें । भेस भिसयवरेहिं समासिउं । ता घरिणिइ सज्जणसंघाएं। सारसपुरवराउ वेयालउ । णिसि वणि वियss पयई घिवतें । हा हा पाह णाह पभणंती । धरिणिरोहणग्गोहणिवासिणि । लीलालोयणधवलकंडक्खिणि' । जो तुहुं जाणहि तुह बहिणीवर | तें होएव्वर महु भत्तारें । सो महुं सामिल होंतु धरेव्बउ | खणि संपत्तउ सतहोयरिधरु । इबरें वाहिवि लुंचियदेहें । ता तं सुहिहियउल्लइ लग्गउं ।
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( 2 ) 1. AP दिग्धें । 2. AP भक्खिकण 3. P सूरवीरु णायें। 4. AP आयेंतें। 5. AP लीलालोइणि 6 A मुणिदें। 7 A रिड्डिय 8. A गायरु; P बणय 9 A पछि " पुच्छिए ।
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घत्ता - यह सुनकर उस भील ने व्रतभार ग्रहण कर लिया। उसने जीवन-भर के लिए कौए के मांस का आहार छोड़ दिया।
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घूमते हुए रहट की तरह लम्बा समय बीतने पर उसका शरीर रोग से सूखकर काँटा हो गया। वैद्यवरों ने उसे संक्षेप में दवा बतायी। परन्तु भील ने कौए का मांस नहीं खाया। तब स्त्री ने सज्जनों के समूह के द्वारा उसके वेगवान साले को सारसपुर ( सारसौख्य नगर ) से बुलवाया। रात्रि के समय भयंकर वन में पैदल आते हुए उस शूरवीर साले ने सुना कि एक स्त्री ' हा स्वामी ! हा स्वामी ' कहकर हो रही है। वह गया और शीघ्र उसने धरती पर उगे हुए वटवृक्ष में निवास करनेवाली उस स्त्री से पूछा। अपनी चंचल आँखों के धवल कटाक्षोंवाली उसने कहा- "मैं एक यक्षिणी हूँ। जिसको मुनीन्द्रों ने सम्बोधित किया है, ऐसे अपने बहनोई को तुम जानते हो, कौए के मांस को छोड़ने के फल के प्रभाव से वह मेरा पति होगा । परन्तु तुम जाकर उसका व्रतभंग करोगे और उसे मेरा पति होने से रोक लोगे ।" यह सुनकर वह भील तुरन्त गया और शीघ्र अपनी बहिन के घर पहुँचा। साले ने सम्बोधन करते हुए प्रेम से प्रार्थना की कि किसी लुंजपुंज शरीरवाले व्यक्ति ने ग्रहण किया हुआ व्रत नहीं तोड़ा। तब यह बात उस सुधी के मन को लग गयी।