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महाकइपुष्फयंतविस्यउ महापुराणु
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अट्टणउदिमो संधि पभणइ मगहणरिंदु भो भो तिहुवणसारा। अक्खहि मज्झु भवाइं गोत्तमसामि भडारा ॥ ध्रुक्कं ॥
भासइ इंदभूइ' भूईसर भो दसारकुलकाणणकेसरि खयरसारु णामें तहि वणयरु साहु समाहिगुत्तु पई दिउ वदिउ करयल मउलिवि भावें संजमभारु गरुउ" परियड्वउ भिल्ले भणिउ धम्मु किं वुच्चइ । धम्मु बप्प जं जीउ ण हम्मद जं अदिण्णु परदविणु ण धिप्पइ । जं णउ रणियालि भुजिज्जइ पंचुंबरपरिहारु रइज्जइ सो ज्जि धम्मु जं बयई अहंगई
भो भो णिसुणि भविस्सजिणेसर । अस्थि एत्थु वरबिंझमहागिरि। तुहं होतउ बाणासणसरकरु। पिट्ठाणिहिउ सुटु' विसिट्ठउ। उझियपावें वज्जियगावें। रिसिणा बोल्लिउ धम्मु पवड्ढउ। पुणरवि तासु भडारउ सुच्चइ। अलिउं ण भासिज्जइ णउ सुम्मइ। जं मणु परपरिणिहि पाउ रप्पइ। मासु मन्जु जं महु वज्जिज्जई । परपेसुण्णउं जं ण कहिन्जइ। अण्णु किं धम्महु मत्थइ सिंगई।
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अट्ठानवेवी सन्धि मगधराज कहता है-हे भुवनश्रेष्ठ ! आदरणीय गौतम स्वामी ! आप मेरे पूर्वजन्मों को बताइये।
गौतम गा गधर कहते हैं-"हे भावी जिनेश्वर ! हे हरिवंशरूपी कानन के सिंह श्रेणिक ! सुनिए। इस भारतवर्ष में श्रेष्ठ विन्ध्याचल है। तम उसमें खदिरसार नाम के भील थे-अपने हाथों में ग धारण करनेवाले। तमने निष्ठा (ध्यान) में लीन और अत्यन्त विशिष्ट समाधिगप्त मुनि को देखा। तमने भावपूर्वक हाथ जोड़कर उनकी वन्दना की। पाप से रहित और गर्व से दूर मुनिराज बोले-"तुम महान् संयमभार धारण करो, तुम्हारा धर्मभाव बढ़े।" भील ने कहा-"धर्म क्या कहा जाता है ?" तब फिर मुनिराज उसे समझाते हैं- "हे सुभट ! धर्म वह है जिसमें जीव का वध नहीं किया जाता; झूठ नहीं कहा जाता, झूठ नहीं सुना जाता; जो नहीं दिया हुआ परधन है-उसे नहीं लिया जाता और मन दूसरे की स्त्री में नहीं लगाया जाता; जिसमें रात्रि के समय भोजन नहीं किया जाता: मांस, मदिरा और मधु का त्याग किया जाता है; पाँच उदुम्बर फलों का परित्याग किया जाता है; दूसरों की चुगली नहीं की जाती; जो अभंगव्रत है, यही धर्म है; और क्या धर्म के मस्तक पर सींग होते हैं ?"
(1) 1. AP इंदभूमि भूमीतर। 2. A खइरसास। 3. A तह। 4. A सुद्ध। 5. A मउलिय। 6. A गरुय आयउ। 7. AP वंचिज्जइ।