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________________ 97.7.10] महाकइपुष्फवंतविरयड महापुराणु [ 323 आहंडलेण पप्फुल्लमुह सेणिय हउं आणिउ दियपमुहु। महुं संसएण संभिण्ण मइ जिणु पुच्छिउ जीवहु तणिय गइ । गाहें महुँ संसउ णासियउ __ मई अप्पड दिक्खइ भूसियउ। मई समउं समणभावहु गवई पावइयई दियहं पंचसयई। पत्ता-पत्ते मासे सावणि बहुले" पाडिवए दिणि। उप्पण्णउ चउबुद्धिउ मह सत्त वि रिसिरिद्धिज' ॥6॥ म 10 महंतो महाणाणवंतो सभूई गणी वाउभूई पुणो अग्गिभूई। सुधम्मो मुणिंदो कुलायासचंदो। अणिदो णिवंदो' चरित्ते अमंदो। इसी मोरि मुंडी सुओ चत्तगायो । समुप्पण्णवीरंघिराईवभावो। सया सोहमाणो तवेणं खगामो पवित्तो सचित्तेण मित्तेयणामो। सयाकंपणो णिच्चलंघो पहासो विमुक्कंगराओ रइंणाहणासो। इमे एवमाई गणेसा मुणिल्ला' जिणिंदस्स जाया असल्ला महल्ला। सपुव्वंगधारीण' मुक्कावईणं __ पसिद्धाइं गुत्तीसयाई जईणं। दहेक्कूणयाई तहिं सिक्खुयाणं समुम्मिल्लसव्वावहीचक्खुयाणं। घत्ता-मोहें लोहें चत्तउ तिहिं सएहिं संजुत्तउ। एक्कु सहसु संभयउ खमदमभूसियरूवउ ॥7॥ ___10 महावीर उस समवसरण (धर्म-सभा) में विराजमान हुए। "हे श्रेणिक ! द्विजप्रमुख मैं (इन्द्रभूति गौतम गणधर) इन्द्र के द्वारा यहाँ लाया गया। मेरी बुद्धि संशय से नष्ट हो चुकी थी। मैंने जिन भगवान से जीव की गति पूछी। उन्होंने मेरा संशय दूर कर दिया। मैंने स्वयं को दीक्षा से विभूषित कर लिया। मेरे साथ पाँच सौ ब्राह्मणों ने भी श्रमणधर्म स्वीकार कर लिया। घत्ता-फिर श्रावण मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन मुझे चार ज्ञान और सात ऋद्धियाँ हुईं।" महाज्ञानी सम्भूति (गौतम) गणधर, वायुभूति, अग्निभूति, मुनीन्द्र सुधर्मा कुलरूपी आकाश के चन्द्रमा, अनिन्द्य मनुष्यों के द्वारा वन्दनीय और चारित्र में अनिन्ध थे। इनमें थे-श्रीजिनेन्द्र के चरणकमलों की भक्ति उत्पन्न हुई है जिन्हें, ऐसे मुनि मौर्या और मौन्द्रय (मुण्ड), सदैव शोभायमान, तप से शुक्ल ध्यान को धारण करनेवाले, अपने चित्त से पवित्र मैत्रेय नाम के गणधर, नित्य अलंघनीय अकम्पन, अंगराग से रहित और कामदेव का नाश करनेवाले प्रभास । इस प्रकार ये शल्य से रहित महान् गणधर हुए। इसी प्रकार ग्यारह अंगों और चौदह पूर्षों के धारी, आपत्ति से रहित तीन सौ मुनि उनके समवसरण में थे। नौ हजार नौ सौ शिक्षक थे। घत्ता-मोह और लोभ से रहित तथा क्षमा और दम से जिनका शरीर भूषित है, जिन्हें सर्वावधिज्ञान उत्पन्न हो गया है, ऐसे एक हजार तीन सौ अवधिज्ञानी थे। सिरिसक। 2.4 गय सुर सरणु। 9. P गयाई: 1. P"सयाई। 5. १ मासे पुणु सावणे। 5. AP बहुलपक्खे पडिदए दिणे। 7. (7) 1. A नृवंदो। 2. A णिच्चलको। 9. A गणिवा 1 1.P सुपुव्वंग ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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