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________________ 322 ] [97.5.7 महाकइपुप्फयंतविरयत महापुराणु रयणाई वणकबुरियाई 'पसरंतकिरणविष्फुरियाई। हव दुंदुहि साहुकारु कर गुणिसंगें कासु ण जाउ जउ। कण्णहि गुणोहु विउसेहिं घुउ । सहुं बंधवेहिं संजोउ हुआ। चारहसंवच्छरतवचरणु किउ सम्मइणा दुक्कियहरणु। पोसंतु अहिंस खति ससहि भयवंतु संतु विहरंतु महि। गउ जिम्हियगामहु' अइणियडि सुविउलि रिजुकूलाणइहि तडि। घत्ता-मोरकीरसारससरि उज्जाणम्मि मणोहरि । मालमूलि रिसिराणउ रयणसिलहि आसीणउ ॥5॥ 10 छद्रेणुचवासें हयदुरिएं वइसाहमासि सियदसमिदिणि. हत्थुत्तरमज्झसमासियइ' घणघण घाइकम्मई हयई घंटारव हरिरव पडहरव वंदयिउ तेहिं वीराहिवइ किट समवसरणु गयसरसरणु परिपालियतेरहविहचरिएं। अवरोहइ जायइ हिमकिरणि । पहु पडिवण्णउ केवलसियइ। खुहियाई झत्ति तिण्णि वि जयई। आया असंख सुर संखरव। सुत्तामउ चरणजुयलु णवइ। उपइउ तिहुवणजणसरणु। और मन्दार के पुष्प फेंके और रंगों से चित्र-विचित्र तथा फैलती हुई किरणों से चमकते हुए रन । दुन्दुभियाँ बज उठीं, साधुवाद दिया गया। गुणी व्यक्ति के साथ रहने से किसकी जय नहीं होती ? विद्वानों ने कन्या के गुणों की प्रशंसा की। बन्धुओं के साथ उसका संयोग हो गया। महावीर ने पापों का हरण करनेवाला बारह वर्ष का तपश्चरण किया। शान्तिपूर्वक क्षमा और अहिंसा का पोषण करते हुए भगवन्त सन्त धरती पर विहार करते हुए जिम्भिय गाँव के अत्यन्त निकट ऋजुकूला नदी के विशाल तट पर पहुंचे। ___घत्ता-जिसमें मोर, तोते और सारसों का स्वर है, ऐसे मनोहर उद्यान में शालवृक्ष के नीचे रत्नशिला पर मुनिनाथ महावीर विराजमान हो गये। तेरह प्रकार के चारित्र का पालन करनेवाले, पाप के नाशक, तेला उपवास द्वारा, वैशाख शुक्ला दशमी के दिन, सायंकाल में हस्त और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के बीच में चन्द्रमा के आने पर प्रभु केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी से सम्पन्न हो गये। उन्होंने लोहधन के समान घातिया कर्मों का नाश कर दिया। शीघ्र ही तीनों लोक विक्षुब्ध हो उठे। घण्टों, सिंघों, नगाड़ों और शंखों के शब्द करते हुए असंख्य देव आये और उन्होंने वीराधिपति को सेवा को। इन्द्र ने चरणों की वन्दना की। कामदेव की शरण से रहित एवं तीनों लोकों को शरण देनेवाले (5) 1. पसति किरण A हट। 3. A सुमहि । 1. AP अभिय' . (6) । मजारमा'।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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