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महाकइपुष्फयंतविरयर पहापुराणु
[97.3.1
पुणु वणयरगणु' कयपडिखलणु पुणु धगधगंतु जालिउ जलणु । देविंदचंददप्पहरण
पुणु मुक्कई गांचापहरणई। सञ्चई गयाई विहलाई किह किविणह मंदिरि दीणाई जिह । सच्चइतणएण पवुत्तु हलि गिरिवरसुइ वियसियमुहकमलि। वीरहु वीरत्तु ण संचलइ कि मेरुसिहरि कत्थइ ढलइ । इय भणिवि बे वि दिवि गवई वसहारूढई 'रइरसरयई। चेडयरायहु लयललियभुव णियपुरबरि चंदण णाम सुय । णंदणवणि कीलइ कमलमुहि जिह जणिजणणु ण वि मुणइ सुहि। घता-तिह विलसियवम्मीसें णिय केण वि खयरीसें।
पुणु णियपरिणिहि भीएं वणि घल्लिय "सुविणीएं ॥५॥
णियबंधुविओयविसण्णमइ घणयत्तें वसहयत्तवणिहि वणिणा णियमंदिरि णिहिव सइ
तहिं दिट्टी चाहें हंसगइ। ते दिण्णी वणिचूडामणिहि। रूबेण णाई पच्चक्ख रइ।
फिर उसने प्रतिस्खलन करनेवाला वनचरगण भेजा। फिर धकधक कर जलती हुई आग। फिर देवेन्द्र चन्द्र के दर्प का हरण करनेवाले नाना प्रकार के अस्त्र छोड़े। वे सब वैसे ही विफल चले गये, जैसे कंजूस के घर से दीन लोग चले जाते हैं। फिर एक दिन, जिसका मुखरूपी कमल विकसित है, ऐसी गिरिवर-सुता शिवा ने कहा-“वीर अपनी वीरता से च्युत नहीं हो रहे हैं, क्या सुमेरु पर्वत कभी ढलता है ?" यह कहकर रतिरस में लीन, बैल पर सवार वे दोनों (शिव और पार्वती) उनकी वन्दना करके चले गये। चेटक राजा की लता के समान कोमल हाथोंवाली, चन्दना नाम की कन्या अपने नगर में श्रेष्ठ थी। वह कमलमखी नन्दनवन में खेल रही थी। किसी प्रकार माता-पिता और सधीजन नहीं जान सके। ___घत्ता-कामदेव से विलसित विद्याधर उसे उठा ले गया और फिर अपनी पत्नी के डर से उस विनीत ने वन में डाल दिया।
अपने बन्धुजनों के वियोग से दुःखी मन से उसे वहाँ भील ने देखा। उसने उसे वणिकों में श्रेष्ठ सेठ वृषभदत्त को धन की आशा में दे दिया। सेठ ने उसे अपने घर रख लिया। रूप में वह साक्षात् रति थी।
णयरगुणु। 2. A onits पुणु। 3. A 'धगंत। 4. A 'चंद5. AP विगयई। R. AP धीरनु। 7. AP रयरस ।
(3) I. A वणयरमण; P 8. चेल'19.A दुविणीएं।
(4)1. A HहI