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97.2.13]
महाकइपुष्फयंतविश्यछ महापुराणु
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घत्ता-सुणहसीहसीयालह ओरसियहं सकूलहं। वणि अच्छइ उब्भुब्भउ रणिहि णं थिरु" खंभउ ||
(2) ण करइ सरीरसंठप्पविहि
सुपरीसह सहइ । मुयइ दिहि। वटुतकेसजडमालियउ
णं चंदणु फणिउलमालियउ । उज्जेणिहि पिउवणि भययरिहि तमकसणहि भीमविहावरिहि। अण्णहिं दिणि सिद्धिपुरधिपिउ पिउवणि पडिमाजोएण थिउ । जोईसरु जणजणणत्तिहरु अवलोइउ रुहें परमपरु। मई कयउवसग्गहु किं तसइ णियचरियगिरिंदहु किं ल्हसइ । कि ण णंदणु पियकारिणिहि जोयउ जिणु सम्मइधारिणिहि । इय चिंतिवि जेहातणुरुहिण पिंगच्छिभिउडिभीसणमुहिण। बेयाल कालकंकालधर
करवालसूलझसपरसुकर। पिंगुद्धकेस दीहरणहर किलिकिलिरवबहिरियभुवणहर ।
10 चोइय धाइय हरि दिण्णकम फुप्फुप्फुयंत विसि विसविसम । घत्ता-कयभुवणयलविमझें पुणु वि हरेण रउद्दे।।
णियविज्जहिं दरिसाविउ गुरु पाउसु बरिसायिउ ॥१॥ पत्ता-कुत्तों, सिंहों, शृगालों और दहाड़ते हुए शार्दूलों के उस वन में रात्रि में दोनों हाथ ऊपर कर इस प्रकार रहते हैं, मानो स्थिर खम्भा हों।
वह शरीर की संस्कार-विधि नहीं करते। बड़े-बड़े परीषह सहन करते हैं, परन्तु धैर्य नहीं छोड़ते। बढ़े हुए केशों की जटाओं से घिरे हुए ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो नागकुल से घिरा हुआ चन्दन वृक्ष हो। वह उज्जयिनी के मरघट में, अन्धकार से काली भयंकर रात्रि में स्थित थे। दूसरे दिन, सिद्धि रूपी इन्द्राणी के प्रिव वह मरघट में प्रतिमायोग में स्थित हो गये। रुद्र ने लोगों की जन्मपीड़ा का हरण करनेवाले परमश्रेष्ठ योगीश्वर को देखा। क्या यह मेरे द्वारा किये गये उपसर्ग से त्रस्त होते हैं और अपने चर्यारूपी पर्वत से गिरते हैं ? सम्यक्त्व धारण करनेवाली प्रियकारिणी का वह पुत्र ! यह विचार कर, पीली आँखों और भौंहों से भीषण मुखवाले बड़े लड़के ने काल-कंकाल धारण करनेवाले, जिनके हाथों में तलवार, शूल, झस और फरसे हैं, ऐसे पीले और खड़े केशोंवाले, लम्बे नाखूनोंवाले, अपने किलि किलि शब्द से भुवनगृह को बहरा बना देनेवाले वेताल प्रेरित किये। पैर बढ़ाते हुए सिंह, तथा विष से विषम फुफाकारते से हुए साँप दौड़े।
पत्ता-जिसने विश्वतत्त्व का विमर्दन किया है, ऐसे रौद्र हर ने अपनी विद्या से प्रदर्शन किया और भयंकर पावस की वर्षा की।
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सुणय; Pimits सीह। 10. थिरखंभउ। (2) 1. AP"सकस्यविष्टि, 2. AP फणिओमालियउ। S.AP जिगु जाणण' | 4. AP जोपहुं। 5. AP सुप्मा । 6. AP फणि पुष्कुपंत बहु विसि दिसम ।