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महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराण
[97.1.1
सत्तणउदिमो संधि मणपज्जयसंजुत्तउ देवदेउ थिरचित्तउ । तारहारपंरपरि कूलगामणामइ' पुरि ॥ ध्रुवकं ।।
भिक्खहि परमेसरु पइसरइ मणपज्जयणयणे परियरिउ रायहु पियंगुवण्णुज्जलहु थिन भुयणणाहु दिण्णउ असणु तं लेप्पिणु किर जा णीसरिउ देवहिं जयतूरई ताडियई भो चारु दाणु उग्धोसियउं मंदाणिलु बूढर सीयलउ एत्तहि दुक्कम्मई गिट्ठवई जिण जिणकप्पेण जि चक्कमई
घरि घरि सुसमंजसु संचरई। कूलहु घरपंगणि' अवयरिउ। पणवंतहु मालियकरयलहु। णवकोडिसुद्ध मुणि दिव्यसणु । ता भूमिभाउ रयणहिँ भरिउ। गयणयलहु फुल्लई पाडियई। अइसुरहिउं पाणिउं वरसियउ । णिउ परवंदिउ बहुगुणणिलउ। भीसणि णिज्जणि वणि दिण गमड। जो पाणहारि तास वि खमइ।
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सत्तानवेवी सन्धि
मनःपर्ययज्ञान से युक्त और स्थिरचित्त देवदेव परमेश्वर निर्मलहार के समान धवलगृहोंवाले कूलग्राम नगर में परमेश्वर भिक्षा के लिए प्रवेश करते हैं। न्यायवान् वह घर-घर जाते हैं। मनःपर्ययज्ञान से सहित वह कूल (राजा) के गृह-आँगन में आये। प्रियंगुलता के वर्ण के समान उज्ज्वल हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए राजा के यहाँ भुवननाथ ठहर गये। नौ प्रकार से शुद्ध दिये गये उस आहार को ग्रहण कर वह दिगम्बर मुनि जैसे ही बाहर निकले, वैसे ही भूमिभाग रत्नों से भर गया। देवों ने जयतूर्य बजाये। आकाशतल से फूलों की वर्षा हुई। 'अहो ! बहुत सुन्दर आहार' यह उद्घोष किया गया। अत्यन्त सुगन्धित जल की वर्षा हुई। शीतल मन्द पवन बहा। अनेक गुणों का घर राजा मनुष्यों के द्वारा वन्दित हुआ। यहाँ महावीर दुष्कर्मों का नाश करते हैं, भीषण निर्जन वन में दिन बिताते हैं। जिनवर जिन के आचरण से परिभ्रमण करते हैं। जो प्राणों का अपहरणकर्ता है उसे भी क्षमा कर देते हैं।
(1) APणामे। 2.AP संसरत। 3. AP "पज्जयणाणें। 4.8 प्रगणि। 5. Pदिव्यवसण। 6. AP परिसियङ। 7. AP चिक्षामह। H. AP तासु नि।