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________________ 96.11.12] महाकइपुष्फवंतविरयउ महापुराणु [317 10 छट्टोववासु किउ मलहरेण तवचरणु लइउ परमेसरेण। मणिमयपडलें लेप्पिणु ससेस इंदें खीरण्णवि घित्त केस। घत्ता-परमेट्ठि रिसिंदु थिउ पडिवज्जिवि संजमु। थुउ भरहणरेहिं पुप्फयंतर्वादेयकमु ॥11॥ इय महापुराणे तिसद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाभयभरहाणुमण्णिए महाकइपुष्फयंतविरइए महाकव्ये वीरणाहणिवखवणवण्णणो णाम उण्णउदिमो परिच्छेउ समत्तो ॥6॥ होने पर, मल का हरण करनेवाले परमेश्वर ने तीन दिन का उपवास (छह समय का भक्तप्रत्याख्यान कर तेला अर्थात् सी दिन का पचास) कर चाय ले लिया। इन्द्र ने उनके समस्त केश मणिमय पटल में रखकर क्षीरसमुद्र में विसर्जित कर दिये। ___घत्ता-इस प्रकार परमेष्ठी मुनीन्द्र संयम लेकर स्थित हो गये। पुष्पदन्त के द्वारा वन्दितचरण उनकी भरत के जनों ने स्तुति की। प्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंवाले इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित तथा महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का तीर्थकर महावीर का निष्क्रमण-वर्णन (दीक्षा-धारण) नाम का छियानवौं परिच्छेद समाप्त हुआ। 9. AP "णिवलवणं।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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