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महाकइपुष्फयंतविरयड महापुराणु
[96.10.10 अहिसेयसलिलधुयमंदरेण
जो णिब्भउ भणिउ पुरंदरेण। तं णिसुणिवि देवें संगमेण होइवि भीमें उरजंगमेण। णंदणवणि कीलातरु णिरुद्ध गय सहयर सिसु थिउ तिजगबंधु। तहु फणिमाणिक्कई फसमाणु अविउलु अचलु' वि सिरिवड्माणु। घत्ता-फणमुहदाढाउ' कर फुसंतु णउ संकिउ। पुज्जिवि देवेण वीरणाहु तहिं" कोक्किउ ||100
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कोटिं
दुबई-जं सिसुदंसणेण' रिउणो वि हु होति विमुक्कमच्छरा।
जस्स' कुमारकालपरिवट्टणववगय तीस वच्छरा । छ।। जो सत्तहत्थ सुपमाणियंगु में विद्धसिउ दूसहु अणंगु। णिबेइर मो मालिकोहि संजोहिः लोयंतियसुरेहि। अहिसिंचिउ पुणु सयलामरेहिं विज्जिज्जतउ चामरवरेहि। चंदप्पहसिवियहि पहु चहिष्णु तहिं णाहु' संडवणि णवर' दिण्णु। मग्गसिरकसणदसमीदिणंति संजायइ तियसुच्छवि महंति। वोलीणइ चरियावरणपंकि हत्युत्तरमज्झासिइ ससकि।
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ने जो उन्हें निर्भय कहा, उसे सुनकर संगमदेव ने भीषण साँप बनकर नन्दनवन में क्रीड़ातरु को अवरुद्ध कर लिया। सब सहचर भाग गये, लेकिन त्रिजगबन्धु शिशु वहाँ रह गया। उसके फन के माणिक्यों को छूते हुए श्रीवर्धमान अक्षुब्ध और अचल थे। ___ घत्ता-साँप के मुख की दाढ़ों में हाथ डालते हुए भी वह शंकित नहीं हुए। देव ने पूजाकर उनका नाम वीरनाथ कहा।
जिस शिशु के दर्शन से शत्रु भी मत्सर से रहित हो जाते हैं, ऐसे उनके कुमार-काल के प्रवर्तन में तीस साल समाप्त हो गये। जो सात हाथ के प्रमाणित शरीरवाले थे, जिन्होंने असह्य कामदेव को ध्वस्त कर दिया था, ऐसे उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया। लौकान्तिक देवों ने हाथ जोड़कर उन्हें सम्बोधित किया। श्रेष्ठ चामरों द्वारा हवा किये जाते हुए, उनका समस्त देवों द्वारा पुनः अभिषेक किया गया। चन्द्रप्रभ शिविका पर आरूढ़ होकर प्रभु ने खण्डवन में गमन किया। मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष में दशमी के दिन, देवों के द्वारा किये गये उत्सव में, चारित्रावरण कर्म के नष्ट होने पर, चन्द्रमा के हस्त और उत्तराफाल्गुन नक्षत्रों के मध्य में स्थित
H. Pomits this timi. H. AP अविचलु। 10. AP फॉणमुह"। 11. A तहो।
(11) I. A जस्स सुदंसणेण। 2. " तस्स। S.AP सो। 5. A चामरघरेहि; P चलचामरेटिं। 5. P चडिल्लु। 6. AP णाह। 7. A णायसंडु। ४. भञ्झासिय।