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________________ 1 1 96.10.9] महाकइपुप्फयंतविरच महापुराणु बद्धाउमाणु जइबहु" पहूउ घत्ता - पयणिहिखीरेहिं कलसहिं जियछणवंदहिं । सिरिवडुमाणु । जयतिलयभूउ । + असितु जिणिदु मंदरासहारे सुरिदहिं ॥१॥ ( 10 ) दुवई - पुज्जिउ पुज्जणिज्जु मणिदामहिं भूसिउ भुवणभूसणो । संधु चित्तवित्तवावारिहिं' कुसमयरइवदू ॥७॥ आघोसिउ णामें चडुमाणु जो पेक्खिवि णउ गंभीरु उयहि जो पेक्खिवि चंदु ण कंतिकंतु ' मज्झत्यभाउ सुहसुक्कलेसु बुज्झियपरमक्खरकारणेहिं अवलोइउ सेसवि देवदेउ सम्म कोक्किउ संजमधणेहिं जगि भणमि भडारउ कहु समाणु । जो पेक्खिवि ण थिरु गिरिंदु समहि । जो पेक्खिवि सूरु ण तेयवंतु। णं धम्मु परिट्टिउ पुरिसवेसु । जो संजयविजयहिं चारणेहिं । उ भीसणु संदेहहेउ । विरइयगुरुविषयपयाहिणेहिं । [ 315 20 5 का अन्त करनेवाले, निश्चित आयु प्रमाणवाले, यतियों के प्रभु विश्व के विजयतिलकस्वरूप श्रीवर्धमान उत्पन्न हुए । घत्ता -- पूर्णचन्द्र को जीतनेवाले, सुरेन्द्रों द्वारा क्षीरसागर के जल से भरे कलशों से जिनेन्द्र का अभिषेक किया गया। ( 10 ) पूज्यनीय भी पूजित हुए । भुवनभूषण भी मणिमालाओं से भूषित हुए । खोटे शास्त्रों को दूषित करनेवाले उनकी नाना प्रकार के वृत्त - व्यापारों द्वारा संस्तुति की गयी। नाम से उन्हें बर्धमान घोषित किया गया। विश्व में आदरणीय को किसके समान बताऊँ ? उन्हें देखकर समुद्र गम्भीर नहीं रहता, उन्हें देखकर धरती सहित गिरीन्द्र स्थिर नहीं रहता, उन्हें देखकर चन्द्रमा कान्ति से कान्त नहीं रहता, उन्हें देखकर सूर्य तेजस्वी नहीं रहता । शुभ शुक्ल लेश्यावाले मध्यस्थभावी वह ऐसे लगते थे, मानो पुरुष वेश में धर्म प्रतिष्ठित हो । जान लिया है परमाक्षरों को तथा उनके कारण को जिन्होंने ऐसे संजय और विजय नाम के चारण मुनियों ने बचपन में देवदेव को देखा और उनके सन्देह का कारण दूर हो गया। जिन्होंने महान् विनयवाली प्रदक्षिणा की है, ऐसे उन संयमधन मुनियों ने उन्हें सन्मति कहकर पुकारा। अभिषेक जल से मन्दराचल को धोनेवाले इन्द्र 11.AP जइबड़। 12. A असित्तु । ( 10 ) 1. AP "वित्तवरवागिति । 2 A बहु समाणु 9 AP read a as band basa 4. AP कतिवंतु। 5. AP सुसुक्क । 6. A धम्पि 1 5. पयासहिं ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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