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महाकइपुष्फयंतविण्यउ महापुराणु
[96.9.1
(9) दुवई-कयविभमविलास परमेसरि बालमरालचारिणी' ।
केकणहारदोरकड़िसुत्तयकुंडलमउडधारिणी ॥छ। चंदक्ककति
संपण्णकित्ति। सिर हिर संलछि . दिहि पंकयच्छि। सई कित्ति बुद्धि
कयगब्भसुद्धि। आसाढमासि
ससियरपयासि। पक्खंतरालि
हयतिमिरिजालि। दिसणिम्मलम्मि
छट्टीदिणम्मि। संसारसेउ
थिउ गटिभ देउ। संपण्णहिट्टि
कय कणयविट्टि। जक्खेण ताम
णवमास जाम। मासम्मि पत्ति
चित्ताणिउत्ति। सियतेरसीइ
जणिओ सईई। जिणु "भुवणणाहु
भम्पाहदेहु। मुणिभासियाइ
पण्यासियाइ। सह दोसवाई
जइयहुं गयाइं। णिबुइ जिणिदि
अहतिमिरयंदि। सिरिपासणाहि
लच्छीसणाहि। तणुकतिकंतु
तइयहं तियतु"।
किया है विभ्रम विलास जिन्होंने ऐसी, तथा बालहंस के समान चलनेवाली, कंकण, हार, डोर, कटिसूत्र, कुण्डल और मुकुट धारण करनेवाली परमेश्वरी, चन्द्र और सूर्य के समान कान्तिवाली, सम्पूर्ण कीर्ति से युक्त श्री, लक्ष्मीसहित ह्री, कमलनयनी धृति, शची, कीर्ति और बुद्धि देवियों ने गर्भशुद्धि की। असाढ़ माह की चन्द्रकिरणों से प्रकाशित तथा तिमिरजाल को नष्ट करनेवाले शुक्तपक्ष में दिशाओं से निर्मल छठी के दिन, संसारसेतु वह गर्भ में स्थित हुए। यक्ष ने हर्ष उत्पन्न करनेवाली कनकवृष्टि तब तक की, जब तक नौ मास नहीं हुए। नौवाँ मास पूर्ण होने पर, चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन, देवी ने स्वर्णप्रभ भुवनस्वामी जिन (जिनदेव) को जन्म दिया। पायरूपी अन्धकार के लिए चन्द्रमा और लक्ष्मी के स्वामी पार्श्वनाथ के निर्वाण प्राप्त कर लेने पर, मुनियों के द्वारा 'भाषित जब दो सौ पचास वर्ष बीत गये, तब शरीर की कान्ति से कान्त, जन्म-जरा-मृत्यु
(9) I. A *गापिणी । 2. A "मटल"। 3. AP घंटादिति। 4. AP संपत्तकित्ति। 5. " सई कति। 6. Komits this line. 7. A संपत्तहिट्टि, P संपणहिदि। . A पवण'। ५. तिमिरइंदे। 10. A तक्तु; ' तयंतु ।