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96.8.18] महाकइगुप्फयंतविरयउ महापुराणु
[313 सुरिंदच्छराथोत्तसमाणियाए सुसिद्धत्थसिद्धत्थरावाणियाए। सलीलं चरंतो चलो णं गिरिंदो जिणंबाइ दिट्ठो पमत्तो करिंदो। विसेसो विलंबंतसाहासमेको रीगो विवाहितो। वरं दामजुम्म बिहू वीअधंतो' रवी रस्सिजालावलीविष्फुरंतो। सरते सरंत विसारीण दंदं घडाणं जुयं लोयकल्लाणवंदं । पहुल्लतराईवराईणिधासो
पववतवेलाविसासो' सरीसो। पहाउज्जलं हेमसेहीरपीट महाहिंदहम्म विलासेहिं रूढं । मरुद्ध्यचिंधं सुभित्तीविचित्तं घरं चारु 'आहंडलीयं पवित्तं ।
10 मणीणं समूह पहाविष्फुरतं परं सोहमाणं तमोहं हरंत। जलतो हुयासो धरायासधामे णियच्छेवि दीहच्छि सामाविरामे। विउद्धा गया जत्थ रायाहिराओ। धरित्तीसचूडामणीघिठ्ठपाओ"। पियाए सुहं दसणाणं वरिट्ठ फलं पुच्छियं तेण सिटू विसिट्टा। सुओ तुज्झ होही महादेवदेवो महावीयराओ विमुक्कावलेवो।
15 महावीरबीरो महामोक्खगामी तिलोयडउ चंदो तिलोयस्स सामी। घत्ता-घरपंगणि4 तासु रायहु सुहपब्भारहिं ।
बुट्टउ धणणाहु अबिहंडियधणधारहिं ॥8॥ ने रात्रि में सुखद स्वप्नावलि देखी। सुरेन्द्र की अप्सराओं के स्तोत्रों से सम्मानित, परिपूर्णार्थ, सिद्धार्थ की रानी, जिनदेव की माता प्रियकारिणी ने देखा-लीलापूर्वक चलता हुआ चंचल एवं गिरीन्द्र की भाँति प्रमत्त गजेन्द्र, लटकते हुए गलकम्बलों वाला वृषभेन्द्र, भयंकर सिंह, दिव्य लक्ष्मी का अभिषेक, श्रेष्ठ मालायुग्म, अन्धकार को नष्ट करनेवाला चन्द्रमा, किरणावलि से चमकता हुआ सूर्य, सरोवर में चलता हुआ मत्स्यों का जोड़ा, लोककल्याण का समूह कलशों का युगल, खिले हुए कमलों की पंक्तियों का निवास सरोवर, अपनी मर्यादा का विस्तार करता हुआ समुद्र, प्रभा से उज्ज्वल स्वर्ण सिंहासन, विलासों से प्रसिद्ध नागलोक। हवा से उड़ते ध्वजों से युक्त, सुन्दर भित्तियों से विचित्र, सुन्दर और पवित्र इन्द्र का विमान। प्रभा से भास्वर, अत्यन्त शोभित और अन्धकार का हरण करता हुआ मणियों का समूह । आकाश और धरती के बीच प्रज्वलित अग्नि। रात्रि के अन्तिम प्रहर में इन स्वप्नों को देखकर, सबेरे जागकर वह वहाँ गयी जहाँ धरती के नरेशों के चूड़ामणियों से जिसके पैर घर्षित होते हैं, ऐसा राजाधिराज सिद्धार्थ का कक्ष था। प्रिया ने स्वप्नों का शुभ फल पूछा। उसने भी विशेषरूप से कहा कि महादेव- देव तुम्हारा पुत्र होगा-महावीतराग और अहंकार से शून्य। महावीर, वीर, मोक्षगामी, त्रिलोक के द्वारा वन्दनीय और त्रिलोक का स्वामी।
पत्ता-उस राजा के आँगन में सुख के प्रभारों से युक्त अखण्डित धन-धाराओं के द्वारा कुबेर स्वयं बरस गया।
2. A दीयवंतो। 9. A तरंत। 4. A"विसालो। 5. A"सेहीरवींद। 6. A पडा । 7. AP कुपीणसीयं । 8. AP read this line as : महग्यो अलंघो फुरतो असोहो (A ससोहो), पहाकतिमुसो मणीणं समूहो। 9. A णियचोड़। 10. A अचूलापणी। 11. AP घर। 12. A दसिहं। 15. P विदो। 14. घरप्रंगणि।