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महाकइपुष्पयंतविरयउ महापुराण कुंडरि' राउ सिद्धत्थु सहिउ जो सिरिहरु मग्गणवेसरहिउ । अकवालचोज्जु जो देउ रुद्दु अमहिउ सुरेहिं जो गुणसमुद्दु। ण गिलिउ गहेण जो समरसूरु जो धम्माणंदु ण सघरदूरु। जो णरु अविहंदलि दलियमल्लु। जो परणरणाहहु जणइ सल्लु । "अणिवेसियणियमंडलकुरंगु जो भुवणइंदु" अविहंडियंगु। जो कामधेणु पसुभाषचुक्कु
जो चिंतामणि चिंताविमुक्कु। अणवरयचाइ चाएण धण्णु असहोयररिउ सयमेव कण्णु। दोबाहु वि जो रणि सहसबाहु सुहिदिण्णजीउ4 जीमूयवाहु। दालिबहारि रायाहिराउ
जो कप्पलक्खु णउ कट्टभाउ । चता-पियकारिण वे तुगकुमकुंभत्वणिं । ___ तहु रायहु इट्ट णारीयणचूडामणि ॥6॥
दुवई-एयहं विहिं मि जक्ख कमलक्ख सलक्खणु रक्खियासवो।
चउबीसमु जिणिंदु सुउ होही पयजुवणवियवासवो ॥छ।
जो रुद्र (प्रचण्ड, शिव) होते हुए भी 'अकपाल चोज्ज' (दुःखी व्यक्तियों के लिए आश्चर्यकर, कपाल रहित होने पर भी शिव, इस आश्चर्य से युक्त) है, गुणों के समुद्र होते हुए भी, जो देवों के द्वारा अमथित है (मथा नहीं गया); जो समरशूर होते हुए भी ग्रह (राहु, दुराग्रह) से कभी पीड़ित नहीं हुआ, जो धम्मनन्द (धनुष से आनन्द करनेवाला, युधिष्ठिर) होते हुए अपने घर से दूर नहीं था। जो मरुलों को दलित करनेवाला णरु (पार्थ अर्थात् अर्जुन) होकर भी विहन्दल (विहन्दल नाम का नर्तक) नहीं था। (पक्ष में) जिसकी सेना पाप से रहित थी। जो शत्रु-राजाओं के लिए शल्यकारक था; जो अपने मण्डल में निरन्तर बस्तियाँ स्थापित करनेवाल था, जो अविघटितांग भुवनेन्द्र था, जो पशुभाव से रहित कामधेनु था, जो चिन्ता से रहित चिन्तामणि था, जो अनवरत त्याग और चाप से धन्य था। दुष्टों के लिए शत्रु जो स्वयं कर्ण था। दो बाँहोंवाला होते हुए भी जो युद्ध में सहस्रबाहु था, जो सुधीजनों को जीवनदान देनेवाला सुबाहु था, जो दारिद्र्य का हरण करनेवाला राजाधिराज था, जो कल्पवृक्ष होते हुए भी काष्ठभाव से रहित था।
घत्ता-विशालगज के कुम्भस्थल की तरह स्तनोंवाली उसकी प्रियकारिणी देवी थी, जो नारीजनों में श्रेष्ठ और राजा के लिए अत्यन्त प्रिय थी।
हे कमलाक्ष यक्ष : आश्रितों की रक्षा करनेवाले लक्षणों से युक्त चौबीसवें तीर्थंकर, इन दोनों के ही पुत्र
1.कुंडलार।8. A माहेउ। 9. AP अकवालभौजु । 10.AP रिउ भीम वि ण पर पहाणप्तिाल। 11. AP सुणिवेसिय; Krecardsap' सुणियसिति वा पाउः । सुनियेशितो निजमण्डले कुरं गु पृथ्वीरमणीयता येन। 12.AP भुवणयंदु। 13. A घण्णु। 14. AP विष्णु जीप। 15. हयकटुभाउ ।