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________________ 96.5.7] महाकइपुष्फयंतविरपज महापुराणु [ 309 5 10 आउसु अट्ठारहजलहिमाणु माणेप्पिणु पुणु चुउ भव्यभाणु। घरसिहरारूढणडतखयरु' इह भारहि छत्तायारणयरु' । सुपसिद्ध णदिवद्धणु णरिंदु वीरवइ देवि तहि पुत्तु पंदु। हुउ पत्तवंतु पत्ताहिसेउ महि भुजिवि णिोदेवि मयरकेउ । पोट्टिलहु पासि पावइउ केव रिसहहु णवंतु बाहुबलि जेव। घत्ता-हुउ रिसि समचित्तु अप्पउं खतिइ भूसइ। थुउ हरिसु ण लेइ णिदिउ 'णउ सो रूसइ ॥4॥ (5) दुवई-इय' णीसंगु सल्लपरिवज्जिउ दूरविमुक्कण्हाणओ । लाहालाहहगणवहबंधणसुहदुक्खे समाणओ ॥४॥ तवि' तेत्थु ताच तें मुणिवरेण . जमसंजमभारधुरंधरेण। अट्र वि अंगई अवहेरियाई एयारह अंगई धारियाई। जिह चित्तसद्धि तिह पिंडसुद्धि तह पवियंभइ थिर धम्मबुद्धि। णउ सोबइ जग्गइ दियहु रत्ति सो करइ सव्वभूएसु मेत्ति। णिज्जणि वणि गिरिवरकुहरि वसई विकहाउ' ण जंपइ णेय हसइ। 5 पर्यन्त आयु मानकर, भव्यों के लिए सूर्य वह फिर च्युत हुआ। इस भारतवर्ष में, जहाँ गृहशिखरों पर आरूढ़ होकर विद्याधर नृत्य करते हैं, ऐसा छत्रपुर नगर है। उसका सुप्रसिद्ध राजा नन्दीवर्धन था और उसकी देवी वीरवती। वह उसका पुत्र नन्द हुआ। वाहनों से युक्त वह अभिषेक को प्राप्त हुआ। वह कामदेव धरती का भोग कर और उसकी निन्दा कर प्रोष्ठिल मुनि के पास उसी प्रकार प्रव्रजित हो गया, जिस प्रकार ऋषभ को प्रणाम करते हुए बाहुबली प्रव्रजित हो गये थे। घत्ता-वह मुनि हो गया। समचित्त अपने को वह क्षमा से भूषित करते हैं। स्तुति करने पर वह हर्ष नहीं करते और निन्दा करने पर क्रोध नहीं करते। (5) इस प्रकार अनासक्त, शल्यों से रहित, स्नान को दूर से छोड़नेवाले वह लाभ-अलाभ, हनन-वध-बन्धन और सुख-दुःख में समान थे। वहाँ तप कर, यम और संयम के भार में धुरन्धर उन मुनिवर ने आठों अंगों का पालन कर ग्यारह अंगों को धारण किया। जैसे-जैसे चित्तशुद्धि होती है, वैसे-वैसे शरीरशुद्धि होती है, और वैसे-वैसे ही स्थिर धर्मबुद्धि बढ़ने लगती है। दिन-रात, वह नहीं सोते हैं, जागते रहते हैं। वे सब प्राणियों के प्रति मित्रता रखते हैं। निर्जन वन और गिरिवर की गुफा में निवास करते हैं। विकथाएँ न कहते हैं और 3. पुणु चउमव्वमाणु। 4. A परे। 5..A भारहारोत्तापरण। 6. APणपरे। 7. पुण्णवंतु पुण्णा" | 8. A पोढिलहो। 9. AP सो गाउ। (5) I. AP अइणीसंगु। 2. AP विमुकमाणओ। 3. A तदु तिब्बु तवंत; सधु तिब्बु ताव ते। 1. A सय भूएसु। 5. A विकहा गउ जपई।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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