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गहाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराण
सुबसायरसूरिहि पासि दिक्ख मुउ सुरु संजाउ महंतसुक्कि तणुतेयविहिणदिवायराई पुणु धादsiss भमियमेहि पुक्खलवइविसइ मणोहिरामि गंदतणिउणणायर महत्व तहि गरबइ अरिवरतिमिरमित्तु तहु दूरुज्झियदुद्दतगाव भव्यामरु विहवो इव रमाइ
अवलंबिय लहुं परलोयसिक्ख । बहुदुक्ख दोहग्गमुक्कि । तहिं जीविवि सोलह सायराई । पुव्विल्लइ "सुरगिरिवरविदेहि । पिच्चंतछेत्तउद्दामगामि' । पुरि अस्थि पुंडरिंगिणि पसत्य । णायें सुमित्तु "सुविसिट्ठमित्तु । सुव्वय महएवि महाणुभाव । सो ताहि गब्धि घिउ जणिउ ताइ ।
घता - णामें पियमित्तु चक्कवट्टि होएप्पिणु । णव विहि रयणाई महि असेस भुंजेपिणु ॥३॥
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दुबई - णिसुणिवि परमधम्मु खेमंकरजिणवरणाहभासिओ ।
णंदणु सच्चमित्तु' अहिसिंचिवि अप्पणु तउ समासिओ ॥ छ ॥ राएं दूसहरिसिणिट्ट सहिवि दम्पिट्ट दुट्ट खल तिट्ठ महिवि । किउ संणासणु हुउ सग्गलोइ सहसारणामि संपण्णभोइ ।
[96.3.6
5. AP सेवि! 6. AP सुरवरगिरिविदेहे। 7. AP AP पुरे । D. A पुंडरिकणि। 10. AP सुविसुद्धचित्तु । 11. AP सुक्कामरु । (4) 1. A f 2. AP for
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विरक्त होकर सम्यक्त्वरूपी दर्शन से शोभित उसने श्रुतसागर सूरि के पास परलोक की शिक्षा देनेवाली जिनदीक्षा ले ली। वह मरकर अनेक दुःखवर्ग और दुर्भाग्यों से मुक्त महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ। शरीर के तेज से दिवाकर को पराजित करनेवाले सोलह सागर वर्ष पर्यन्त वहाँ जीवित रहकर, पुनः घातकीखण्ड द्वीप में, जिसमें मेघ भ्रमण करते हैं, ऐसे सुमेरु पर्वत के पूर्वविदेह में, सुन्दर पुष्कलावती देश है, जिसमें पके हुए खेतों से परिपूर्ण ग्राम हैं। उसमें पुण्डरीकिणी नाम की प्रशस्त पुरी है जो महार्थवतीं है और जिसके नागरिक प्रसन्न तथा चतुर हैं। उसमें सुमित्र नाम का राजा था जो अत्यन्त विशिष्ट मित्र तथा शत्रुवररूपी तिमिर के लिए सूर्य था। उसकी दुर्दान्त गर्व से दूर रहनेवाली, महान् आशयवाली सुव्रता नाम की महादेवी थी । लक्ष्मी के अमर वैभव के समान वह उसके गर्भ में अवतरित हुआ। उसने उसे जन्म दिया
यत्ता -प्रियमित्र नाम से चक्रवर्ती होकर उसने नवनिधियों, रत्नों और अशेष धरती का उपभोग किया। (4)
क्षेमंकर नामक तीर्थंकर प्रभु के द्वारा भाषित धर्म को सुनकर अपने पुत्र सत्यमित्र का राज्याभिषेक कर उसने अपने को तप के आश्रित कर दिया । दुःसह ऋषि-निष्ठा सहन कर, दर्पिष्ठ दुष्ट खल तृष्णा को मारकर राजा ने संन्यास ले लिया और सम्पूर्ण भोगवाले सहस्रार नामक स्वर्गलोक में वह उत्पन्न हुआ । अठारह सागर