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________________ 96.3.5] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु 1 307 10 गइलीलाणिज्जियहंसलील तहु गेहिणि सूहब कणयमाल । सो सीहकेउ सुरु ताहि पुत्तु संजायउ लक्खणलक्खजुत्तु। कणउज्जलु णामें कणयवण्णु कंचणकुडलचेंचइयकण्णु। णियघरिणिइ सहुँ उग्गयणमेरु गर वंदणहत्तिइ कहिं मि मेरु। तेणावहिलोयण गुणविसिट्ठ ... . पियमित्त महामणि तेत्यु दिट्ट। वंदिउ वंदारयवंदबंदु णिसुणेवि धम्मु हयमोहतंदु। संजमधरु जायउ खयरु साहु मयरद्धयचंचलहरिणवाहु। मुर संगासें पुणु लंतवक्खि संभूयउ सुरवरु जणियसोक्खि । अणुहुंजियपवरामररमाइं जीविउ तेरह सायरसमाई। घत्ता-पुणु कोसलदेसि पुरि साकेइ स्वण्णइ। दियणिववणिसुद्दचाउवण्णकिण्णइ' |2|| 15 दुवई--णामें' वज्जसेणु णरपुंगमु सीलबइ त्ति गेहिणी। ___ बालकुरंगणवण- पीणत्थणि सीलगुणंभवाहिणी ॥छ॥ सो सत्तमसग्गामरु मरेवि एयहि गड्भासइ अवयरेवि । दालिद्ददमणु जणकामधेणु हरिसेणु णामु उप्पण्णसेणु' । महि भुजिवि णिरु णिव्वेइएण सम्मत्तरयणसुविराइएण। गतिलीला से हंस की लीला को जीतनेवाली कनकमाला उसकी सुन्दर गृहिणी थी। वह सिंहकेतु देव उसका लाखों लक्षणों से युक्त स्वर्ण के समान उज्ज्वल कनकवर्ण नाम से पुत्र उत्पन्न हुआ। स्वर्णकुण्डलों से जिसके कान अलंकृत हैं, ऐसा वह अपनी पत्नी के साथ, जिसमें कल्पवृक्ष उगे हुए हैं ऐसे सुमेरु पर्वत की वन्दना भक्ति करने के लिए गया। उसने वहाँ अवधिज्ञान रूपी लोचनवाले, गुणों से विशिष्ट प्रिय मित्र महामुनि को देखा । देवों के द्वारा वन्दनीय उनकी उसने वन्दना की, और मोहरूपी तन्द्रा को नष्ट करनेवाला धर्म सुनकर वह विद्याधर संयमधारी साधु बन गया जो कामदेवरूपी चंचल हरिण के लिए व्याध (शिकारी) के समान था। फिर संन्यास से भरकर, सुख को उत्पन्न करनेवाला लान्तव नाम का श्रेष्ठ देव उत्पन्न हुआ। जिनमें प्रवर अमरों की लक्ष्मी का अनुभव किया गया है, ऐसे तेरह सागर वर्षों तक जीवित रहकर घत्ता-कोशलदेश के द्विज, क्षत्रिय (नृप), वणिक और शूद्र-चारों वर्गों से संकीर्ण सुन्दर साकेत नगर में वज्रसेन नाम का राजा था। शीलवती उसकी गृहिणी थी। बालमृगनयनी पीनस्तनोंवाली वह शीलगुणों रूपी जल की वाहिनी (नदी) थी। सातवें स्वर्ग का वह अमर मरकर इसके गर्भ में अवतरित होकर, दारिद्रय का दमन करनेवाला तथा लोगों के लिए कामधेनु, हरिषेण नाम का पुत्र हुआ। धरती का उपभोग कर, तथा 8. A वियिंदुः "चिंटचंडु। 4. A दियवणिणियसुद्द। (8) 1. Fromits 'गा। 2.Aणयणि। 3. AP दालिदिलणु। 4. AP उप्पण्णु सूगु ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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