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________________ 306 ] 15 महाकइपुष्फयंतविरयड महापुराणु [96.1.14 चिंतइ महुँ बोहि समाहि होउ महुँ मिच्छादुक्किउ खयह जाउ। मई आसि कुसिद्धतई कयाई परिपालियाई तावसवयाई। मई जीहोवत्थविलुद्धएण णिहणवि' णरिंद रणकुद्धएण। बहुवारउ" मुत्ती एह भूमि भो पसु तित्तिं णउ तो वि जामि। हउं मुउ उप्पण्णउ णरयविवरि बहुवारउ हुउ मिगु" सेलकुहरि। जलयरू थलयरू णहयरु चिलाउ हउं जायउ भवि भवि मंदभाउ। यत्ता-जिणधम्मु मुएवि सयलु वि मई अणुहुतउं। संसारिउ दुक्नु भणु किर कवणु ण पत्तउ ॥1॥ दुवई--इय उवसंतु संतु मुउ केसरि घिउ रिसिसमवियप्पए। णामें सीहकेउ हुए सुरवरु पढमसुरिदकप्पए ॥छ। सो दोसमुद्दथिरपरिमियाउ दिव्वंबरभूसणु दिव्यकाउ। दीवंतरि जणसंपण्णकामि विक्खायइ धादइसंडणामि। पुच्चासामवरपुष्यभाई' मणहरवैदेहि वर्णादण्णछाइ। मंगलवइदेसि सुमंगलालि उत्तसेटिहि वेयडसेलि। कणयप्पहपुरवरि विजयकखु विज्जाहरु णाामें कणयपुंखु। मिथ्यापाप क्षय को प्राप्त हो। मैंने बहुत से कुसिद्धान्तों का आचरण किया है, मैंने तापसव्रतों का परिपालन किया है; जीभ और उपस्थ के लोभी और युद्ध में क्रुद्ध मैंने राजाओं को मारकर कई बार इस धरती का उपभोग किया है। हे प्रभु ! तब भी मैं तृप्ति को प्राप्त नहीं हुआ। मैं मरकर नरक में उत्पन्न हुआ, जड़भाव मूर्ख मैं कई बार पर्वत-गुफा में पशु हुआ, भव-भवान्तर में जलचर-थलचर-नभचर और भील हुआ। बत्ता-जिनधर्म को छोड़कर, मैंने सब-कुछ का अनुभव कर लिया। बताओ मैं कौन-से सांसारिक दुःखों को प्राप्त नहीं हुआ ? (2) इस प्रकार उपशान्त होता हुआ, मुनि के समान परिणाम में स्थित, वह सिंह मर गया और प्रथम स्वर्ग में सिंहकेतु नाम का सुरवर हुआ। दिव्यवस्वों से भूषित दिव्यकाय उसकी दो सागर प्रमाण आयु थी। जनों की कामनाओं को परिपूर्ण करनेवाले विख्यात धातकीखण्ड द्वीप की पूर्वदिशा में सुमेर पर्वत के पूर्वभाग में वनों से छाया प्रदान करनेवाले सुन्दर विदेह में, विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणि में सुमंगलों का घर मंगलावती देश है। उसके कनकप्रभ नामक श्रेष्ठ नगर में विषय का आकांक्षी कनकपुख नाम का विद्याधर था। अपनी बहुबार 'भुतः । बहुयारउ भुत्तीए एह। 12. AP भोएसु तित्ति । 1. A पिउ हुउ सेलसिहरे; H. A .A हिणिय। III. A fण कुद्धरण। 11. 'हुर ग सेलकटरे। H. विर विराज। (2) 1.AL मंदरे। वदित्तठाए।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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