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________________ 95.14.8] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु [ 303 10 सिरका इसांगूलपहन. परकुंजरगणियारिरईहरु। चारणमुणिजुयलें णहि जंतें णियमणम्मि जिणभाउ भरतें। भणइ जेठु जमदमसंजमधरु भो अमियमई साहु महिमयरु। जिणविउ कइदुछ अहे रउ एहु सु अच्छइ सीहकिसोरउ । इय जपतें उबसमधामें बोल्लाविउ अजियंजयणामें। यत्ता-भो भो कंठीरव कयदारुणरव महुवणि तुहं खयकंदउ । कालीसबरीवरु बाणासणधरु होतउ आसि पुलिंदउ।।।3।। (14) तुहं होतउ मरीइ जिणणत्तिउ भरहेसरसुउ' खत्तिउ सोत्तिउ। तुहं संभाविउ मिच्छावायउ बहुभवाइं होंतर परिवायउ। बहुभवाई होतउ कप्पामरु संसरंतु संसारि असूहरु। बहुभवाई होतउ तसथावरु बहुभवाई पत्तउ परयंतरु। तुहुं दुईतें दइवें दंडिउ हूलिउ पउलिउ तिलु तिलु खंडिउ। अण्णण्णई अंगाई लएप्पिणु अण्णणाई वण्ण' मेल्लेप्पिणु। विस्सणंदि णामें जयराणउ' तुहं होतउं जइवरु सणियाणउ । दहमइ सग्गि देउ णच्चियसुरि तुहं होतउ तिविठ्ठ पोयणपुरि। हाथी-हथिनियों की रति का हरण करनेवाला था। एक चारणमुनि युगल, आकाश से जाते हुए अपने मन में जिनदेव के भावों की याद करते हुए (जा रहा था)। उनमें से यम, दम और संयम को धारण करनेवाले ज्येष्ठ मुनि कहते हैं- "हे महिमाकर साधु अमितगति ! जिन भगवान् के द्वारा कहे गये अत्यन्त दुष्ट पाप में रत यह किशोरसिंह यहाँ पर है।" यह कहते हुए उपशमभाव के घर अजितंजय नामक मुनि उससे बोले____घत्ता-“हे कठोर शब्द करनेवाले सिंह ! मधुवन में तुम कन्दमूल खोदनेवाले एवं काली भीलनी के पति, तीर-कमान को धारण करनेवाले भील थे। ___ तुम तीर्थंकर ऋषभ जिनेन्द्र के नाती, भरतेश्वर के पुत्र, क्षत्रिय और ब्राह्मण तुमने मिथ्यावाद स्वीकार किया; और अनेक जन्मों में परिव्राजक होते रहे। अनेक जन्मों में देव होते हुए, प्राणों को धारण कर संसार में घूमते रहे। अनेक जन्मों में त्रस स्थावर हुए, अनेक जन्मों में नरकों में जनमे। तुम दुर्दान्त दैव के द्वारा दण्डित हो, शूली पर शरीरों को धारण कर, अन्य-अन्य वर्गों को छोड़कर, तुम विश्वनन्दी नाम से जग के राजा हुए, तुम निदानवाले मुनि बने। फिर जिसमें देव नृत्य करते हैं, ऐसे दसवें स्वर्ग में उत्पन्न हुए। वहाँ गइ साहु महिसायक। 6. A कयरुंजणरत्र । 2. AP सिरियलइय। 3. AP णियपणे जिपमासिउ सुसरते। 4. AP°धर। 5. 'मद साहु मह सहयर; 7. AP खदकंदउ। 6. AP बाणासणकरू। (14) 1. AP परहेसहो सुऊ। ४. AP बप्प। 3. AP जुवराणउ ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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