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महाकइगुप्फवंतविरयड महापुराणु
[95.14.9
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विसहिवघोरदक्खपब्भारउ तुहं होतउ तमतमपहि णारउ । तुहं होतउ खरणहरुक्केरळ सुरसरितीरि सिहरिसेहीरउ। तुहं होतउ पढमावणिदुक्खिर सिरिहरअरहतें महुँ अक्खिउं। इह पुणरवि हूयउ पंचाणणु पीलुपेयपलदूसियकाणणु'। भो भो मयवइ विद्धंसियमयगय लोहियजलयाराधुयपय । धत्ता-परिहरि दुच्चरियइं दुण्णयभरियई संबोहियभरहेसरु।
पणवहि परमेसरु जियवम्मीसरु पुष्फदंतजोईसरु ॥14॥
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इय महापगणे जिसहिपहारियणालंकारे मागदारहाणमणिए महाकड्पुर्फयतविरहए महाकव्ये बीरसामियोहिलाभो णाम
पंचणवदिमों परिच्छेउ सम्पत्तो 1951
से चय कर पोदनपुर में त्रिपृष्ठ हुए। तुम तमतमःप्रभा नरक में असह्य घोर दुःख प्रभार सहन करनेवाले नारकी हए। तुम गंगा के तीर के निकट पर्वत पर तीव्रनख समूहवाले सिंह हुए। फिर तुम प्रथम नरक भूमि में अत्यन्त दुःखी हुए -श्री अरहन्त ने मुझसे यह कहा है। और अब यहाँ पुनः सिंह हुए हो। मत्तगजों के मांस से इस वन को दूषित करनेवाले ! हे हे मृग गजों को ध्वस्त करनेवाले ! रक्तरूपी जलधारा से पैर धोनेवाले हे सिंह !
पत्ता-तुम दुर्नयों से भरे हुए अपने दुश्चरितों को छोड़ो और जिन्होंने भरतेश्वर को सम्बोधित किया है, ऐसे कामदेव को जीतनेवाले पुष्पदन्त ज्योतीश्वर परमेश्वर को प्रणाम करो।"
वेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभय भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का वीर-स्यामी-बोधिलाभ नाम का
पंचानवेवा परिच्छेद समाप्त हुआ।
1.AP पोजुदेडपला । 5. AP परिहरू । 6. AP पुष्फदंतरिक्षहसरु। 7. AP पंधणरदिमो।