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________________ 95.12.7] महाकइपुष्फयंतविरपर महापुराणु [301 10 तहिं अवसरि गाईइ निसुधिर . ... ..विश्वविउ सिरिक हट पारभित! .. दुक्करकायकिलेसें दुब्बलु भणइ पिसुणु तं कहिं तुह भुयबलु । जेण कविहरुक्खु संचूरित जेण बलेण खंभु मुसुमूरिउ। सो एवहिं खलसमण विण पडियउ 'दुट्ठगिट्टिपरिहट्ठउ । इय णिसुणिवि मुणिवि अयाणउ रिउणा णियमणि बद्ध णियाणउं। घत्ता-जइ जिणवरतवहलु अस्थि सुणिम्मल तो रणरंगि भिडेसमि। इहु वइरि महारउ विप्पियगारउ हउँ परभवि' मारेसमि ॥11॥ (12) मुउ ससल्तु सो साहु गयासणु देउ महासुक्कम्मि सुभूसणु। तेत्यु जि सो वि साहु भूमीसरु जायउ सुरवरु णं 'रूवी सरू। सोलहसायरसमय सहच्छिय । मित्त सणेहवंत अदुगुछिय। पुणु तित्थाड गलियसुहयम्मई कालें पुण्णे देसि सुरम्मइ। पोयणपुरवरि राउ पयावइ । रइ विव मयणहु देवि जयावइ। अबर मयच्छि पुरंधि मिगावइ जाहि रूवु पउलोमि ण पावइ। दोहिं मि ता ते णंदण जाया विजय तिविट्ठ णाम विक्खाया। पड़े। वह कठोर कायक्लेश से अत्यन्त दुर्बल हो चुके थे। वह दुष्ट (विशाखनन्दी) कहता है-वह तुम्हारा बाहबल कहाँ गया जिससे तमने कपित्थ वक्ष को चर-चर किया था जिस बल से खम्भे को तोड डाला था, वह तुम्हारा वल, हे दुष्ट श्रमण, नष्ट हो गया है और एक दुष्ट सद्यःप्रसववाली गाय से भ्रष्ट होकर पड़े हुए हो।" शत्रु से यह सुनकर, और विचार कर, उन्होंने अपने मन में अज्ञानता से यह निदान किया कि___घत्ता--यदि जिगवर के तप का कोई सुनिर्मल फल है, तो मैं युद्ध के रंगमंच पर इससे भिडूंगा। यह मेस अशुभ करनेवाला शत्रु है। मैं अगले जन्म में इसका हनन करूँगा। (12) ___ वह साधु बिना भोजन के ही सशल्य मर गया और महाशुक्र स्वर्ग में भूषणों से अलंकृत देव हुआ। वहीं पर वह राजा साधु (विशाखमूत्ति) सुरवर हुआ, रूप में मानो जैसे कामदेव हो। वे दोनों सोलह सागर पर्यन्त साध रहे, अत्यन्त स्नेहवाले मित्रों की तरह, एक-दूसरे की निन्दा से दूर। फिर, सुन्दर पुण्य कर्म तथा समय (आयुकम) पूर्ण होने पर। पोदनपुर में राजा प्रजापति और कामदेव की रति के समान उसकी पत्नी जयावती थी। एक और मृगनयनी पत्नी मृगावती थी, रूप में इन्द्राणी भी उसे नहीं पा सकती थी। वहाँ से च्युत होकर वे दोनों उनके पुत्र हुए-विजय और त्रिपृष्ठ के नाम से विख्यात । जो पहले का चाचा (विशाखभूति) था, वह बलभद्र हुआ। और विश्वनन्दी शत्रु के बल का अपहरण करनेवाला नारायण (केशव) हुआ। उसने, 3. AP जा सिलान । मुसुभारत। 1. A दुहांगावपारेभPainfरा परिघट्टर। 5. Al' इस पिसणउंगिसुधि जयाणः। 6. AP रिउणा। 7 A पर। (12) 1. सने लरु। 2. AP सुबहम्मए। 3. मयणहे। 4. A पृगाया।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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