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________________ 298 ] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [95.8.12 मंदर घरिणि मंदगइगामिणि रूवें णाइ पुरंदरकामिणि। ताहि सणउ हुउ भारद्दायउ णामें पुणु जायउ परिवायउ। पुणु वि सग्गि पुणु णयरतिरिक्वहिं हुउ चउरासीजोणीलक्खहिं। घत्ता-बहुदुरियमहल्लें मिच्छासल्लें विविहदेहसंघारइ। भरहेसरणदणु संसयहयमणु चिरु हिंडिवि संसारइ ॥8॥ 15 5 मगहएसि रायालइ पुरवरि पारासरहि पुत्तु हुउ थावरु अमरणमंसियइंदपडिदइ पुणु पुव्वुत्तदेसि तहिं पट्टणि विस्सविसाहभूइ सुसहोयर जइणीलक्सपार घरपरिगिर दोहिं मि जाया णवपंकयमुह जो जेटूह जायउ सो थावरु ता सो विस्सभूइदिहि इच्छिवि सिरिहरगुरुहि पासि गइ सिक्खिउ पुणु संडिल्ल विप्पहु घरि। परिसेसेप्पिणु णियसणु थावरु । जाउ तिदंडि मरिवि माहिंदइ । णाणाविहववहारपट्टणि। चिण्णि विणं हलहर दामोयर। वोह मि लाइ कारदहं करिणिउ। विस्सविसाहणंदि वर तणुरुह। माहिदहु आयउ पवरामरु। सारयघणु णासंतउ पेच्छिवि। रायहं तिहिं सरहिं सहुँ दिक्खिउ। 10 जो मानो इन्द्र की इन्द्राणी थी, भारद्वाज नाम के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। वह पुनः परिव्राजक हो गया। फिर स्वर्ग गया। इस प्रकार नरक, तिर्यंच आदि चौरासी लाख योनियों में उत्पन्न हुआ। पत्ता-संशय से आहत-मन, भरतेश्वर का पुत्र मारीच, अनेक पापों से भारी मिथ्यात्व शल्य से, विविध रूपों को धारण करनेवाले संसार में भटकता रहता है। (9) फिर मगध देश की राजगृह नामक महानगरी में शाण्डिल्य नामक ब्राह्मण के घर में पाराशरी ब्राह्मणी का स्थावर नाम का पुत्र हुआ। वस्त्र और गृहादि का त्यागकर वह त्रिदण्डी मरकर, देवों के द्वारा प्रणम्य इन्द्र-प्रतीन्द्रों से युक्त माहेन्द्र स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। फिर, उसी मगध देश के नाना व्यवहारों के प्रवर्तनवाले राजगृह नगर में विश्वभूति और विशाखभूति दो सगे भाई हुए। दोनों ही मानो दामोदर और हलधर (नारायण और बलभद्र) थे। दोनों की गृहिणियाँ जैनी लक्षणों से युक्त थीं, जो मानो दो गजेन्द्रों की दो हथिनियाँ हों। दोनों से नवकमल के समान मुखवाले विशाखनन्दी और विशाखभूति पुत्र हुए। उनमें जो जेठा था, वह स्थावर था, जो माहेन्द्र स्वर्ग से आया हुआ देवप्रवर था। एक दिन विश्वभूति शरदकाल के मेघ को नष्ट होते हुए देखकर, अपने भाग्य को चाहकर श्रीधर गुरु के पास गति (मोक्ष, संन्यास गति) की शिक्षा लेकर उन सैकड़ों Y.AP नहे तणुहु। (७) 1. A आयरु। 2. AP वरधरिणिउ ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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