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महाकपुष्पमंतविरयउ महापुराणुं
हिंगणा विउ । पुणरवि खक्कालेण नियच्छिउ । थूणायार' गामि पसिद्धइ । पुष्पदंतकंत पइभत्तइ । समाउ भणियउ । लग्ग पुणरवि चिरभवचरियहु । गणउ ण होइ सुतच्चविही " णउ |
बंभणु
अक्खसुत्तणा' गाणविहीणउ
घत्ता - जीवदयाहीणहं भक्खियमीणहं जइ सिहाइ सुज्झइ त । तो 12 किं मंडियसर जुइजियससहर 3 बय पाति मा कित्तणु ॥७॥ (7)
मुउ सोहम्मि देउ संभूय सायरसरिसु एक्कु तहिं अच्छिउ इह भारहवरिसंतरि गिद्ध भारद्दायदियाहियरत्तइ पूसमित्तु णामें सुउ जणियउ "मिलियालीपभसणवित्थरियहु
दब्भु देइ जइ गइ' परमत्यें कण्हाइणु हरिणेण वि धरियउं तंबयभाव अंबे सुझाइ डज्झउ जणु विणडिउ अण्णाणें पढमसग्गि सुरवरु होएप्पिणु पुणु पसरियससिसूरपहावहि
तो सिउ पावेव पसुत्थें ।
तं तहु किं ण हरइ दुच्चरियउं । अं पविण भइ समुज्झइ । तउ घरंतु सो मुक्कउ पाणें । एक्कु ओहिमाणु विसेष्पिणु ! णयरिहि सेइयाहि इह भारहि ।
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में डूबता । मरकर वह सौधर्म्य स्वर्ग में देव हुआ। उसके अनुपम रूप का क्या वर्णन किया जाये ? एक सागरपर्यन्त बराबर वह वहाँ रहा, फिर वह क्षयकाल के द्वारा देखा गया अर्थात् मर गया। इस भारतवर्ष में स्थूणागार नाम का सरस और प्रसिद्ध गाँव है। उसमें भारद्वाज ब्राह्मण में अत्यन्त अनुरक्त और पतिभक्त पुष्पदन्त कान्ता ने पुष्यमित्र नाम के पुत्र को जन्म दिया। उस ब्राह्मण को ब्रह्मा के समान कहा गया। जिसमें असत्य भाषणों का विस्तार है, ऐसे अपने पूर्वभव के चरित्रों में वह फिर से लग गया। वह ज्ञान से रहित है।
घत्ता - जीव दया से रहित, मछली खानेवालों का यदि जल शरीर शुद्ध होता है, तो सरोवर की शोभा बढ़ानेवाले और अपनी कान्ति से चन्द्रमा को जीतनेवाले बगुले मुक्ति क्यों नहीं पाते ?
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दूब यदि वास्तव में मुक्ति देती है, तो पशुसमूह को मुक्ति मिलनी चाहिए। कृष्णाजिन (मृगचम) मृग भी धारण करता है, वह उसके दुश्चरित को दूर कयों नहीं करता ? अम्ल से ताम्रपात्र शुद्ध होता है, लेकिन अम्ल पवित्र नहीं होता, इसलिए उसे छोड़ देते हैं। अज्ञान से प्रतारित और दग्ध उसने तप करते हुए प्राण छोड़ दिये और प्रथम स्वर्ग में देव होकर एक सागरपर्यन्त वहाँ रहकर, फिर जिसमें चन्द्रमा और सूर्य के प्रभाव हैं, ऐसे भारत की श्वेताविका नगरी में अग्निभूत ब्राह्मण की भार्या गौतमी से, जो मध्यभाग में दुबली-पतली
h. AP सो हूयउ। 7. A धूगायर 8 मिलियालिचयसेण दित्थरियहो; P मिलियालियवसाणवित्यरियहो । 9. AP चिरु भव' | 10.4 अक्खसुत्तकर गाणविणः ।" अक्खतु णाणेण विहीर 11 A सुतच्चपवीण सुतष्यपयाग। 12 [ ता 13. A जहजिय ।
(7) 1. AP सुहुं। 2. AP जडु। 5. A विणडइ । 4. 4 सेरियाहि ।