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________________ 294 | महाकाइपुष्फयतविरयत महापुराणु [95.4.8 पविमलणाणधारि ममकरु .. पढमारिदु गदगतिशंकर ! आइबंभु महएषु महामहु भुवणत्तयगुरु पुण्णमणोरहु। तहु पहिलारउ सुउ भरहेसरु जो छक्खंडधरणि 10 मागहु वरतणु जेण पहासु वि जित्तउ सुरु वेयडणिवासु वि। विज्जाहरवइ भयकंपाविय णमि विणभीस वि सेव कराविय। घत्ता--जो सिसुहरिणच्छिइ सेविउ लच्छिइ गंगइ सिंधुइ सिंचिउ । णवकमलदलक्खहिं उबवणजक्खहिं णाणाकुसुमहिं अंचिउ ॥4॥ ता' कंकेल्लीदलकोमलकर वीणाहसवंसकोइलसर। तासु देवि उत्तुंगपयोहर णाम अणंतमइ ति मणोहर। सो सुरसुंदरिचालियचामरु ताहि गभि जायउ सबरामरु। सुउ णामें मरीइ विक्खायउ बहुलक्खणसमलंकियकायउ। देवदेउ अच्वंतविवेइउ णीलंजसमरणे उव्येइउ। चरणकमलजुयणमियाहंडलु दिक्खंकिङ मेल्लिवि महिमंडलु । हरिकुरुकुलकच्छाइणरिंदहिं समउं णमंसिउ इंदपडिदहिं। झाणालीणु पियामहु जइयहुं त्तिउ जई' पावइयउ तइयहुं। ज्ञानधारी, पुण्य और सुख के विधाता प्रथम नरेन्द्र, प्रथम तीर्थंकर, आदि ब्रह्मा, महादेव, महामह, भुवनत्रय के गुरु और पूर्ण मनोरथ थे। भरतेश्वर उनका पहला पुत्र था जो छहखण्ड धरती का परमेश्वर था, जिसने मागध, वरतनु और प्रभास को जीता था और विजया निवासी देव को भी। विद्याधर राजा नमि और विनमि भी जिसके भय से काँप उठे थे और जिसने उनसे सेवा करवायी थी। धत्ता--जो मृगशायक की आँखोंवाली लक्ष्मी के द्वारा सेवित एवं गंगा और सिन्धु नदियों द्वारा सिंचित तथा नवकमल दल की आँखोवाले उपवन-यक्षों और नाना कुसुमों से अंचित था। अशोक वृक्ष के पत्तों के समान कोमल हाथों तथा वीणा, हंस, वंश और कोयल के समान स्वरवाली, उसकी तुंगपयोधरोंवाली अनन्तमती नाम की सुन्दर देवी थी। जिसे सुर-सुन्दरियों द्वारा चमर दुराया जा रहा था, ऐसा वह शबरामर उसके गर्भ से मारीच नाम का विख्यात पुत्र हुआ। उसका शरीर अनेक लक्षणों से समलंकृत था। अत्यन्त विवेकशील देवदेव ऋषभ नीलंजसा की मृत्यु से विरक्त हो गये। जिनके दोनों चरणकमलों को इन्द्र प्रणाम करता है, उन्होंने महीमण्डल को छोड़कर दीक्षा ले ली। हरिकुल, कुरुकुल और कच्छ आदि प्रान्तों के नरेन्द्रों के साथ इन्द्र-प्रतीन्द्रों के द्वारा प्रणम्य पितामह (ऋषभ) जब ध्यानलीन थे, तब नाती मारीच 5. AP सहकरु । 6. A सुरवेयड्छ । . A विणमास रोय काराविय। (5) 1. AP थरकंकमी । 2. AP णिब्बेइट। 3. AP जडु।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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