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________________ 292 | महाकइयुप्फयंतविरयउ महापुराणु महुयरपियमणहरि महुयरवणि । होत आति पूरउ णामें । कालिसवरिआलिंगियविग्गहु | सावरसेणु णामु जइपुंगमु । जाव ण मग्गणु कह' व ण वित्तउ । सिसुकरिदंतखंडकयकण्ण 1 गयमयणीलइ" तरुपत्ताई णियत्थइ । पंकयणेत्तर पलफलपिढरविहत्थइ" ॥2॥ (3) परिओसियविलसियवणयरगणि सवरु सुदूसिउ दुष्परिणामें चंडकंडकोबंडपरिग्गहु" अइपरिरक्खिवथावरजंगमु विधहुं तेण तेत्थु आदत्तउ ताम तमालणीलमणिवण्णइ पत्ता- तणविरइयकीत वेल्ली डित्तइ भणिउ पुलिंदियाह मा घायहि मिगु ण होइ बुहु देवु भडारउ तं णिसुणिवि भुयदंडविहूसणु पणचि मुणिवरिंदु समावें भो भो धम्मबुद्धि तुह होज्जउ हा हे मूढ ण किंपि विवेयहि । इहु पणविज्जs लोयपियारउ । मुक्कु पुलिदें महिहि सरासणु । तेणाभासिउं णासियपावें । बोहि समाहि सुद्धि संपज्जउ । [ 95.2.5 5 10 5 का परिमल है, जिसमें क्रौंच पक्षी, तोतों और कोयलों का कलकल शब्द हो रहा है, जिसमें वनचर समूह परितोषित और विलसित है, जो भ्रमरों के लिए प्रिय और मनोहर है, ऐसे मधुकर वन में पुरुरवा नाम का दुष्परिणाम से दूषित एक भील था। उसके पास प्रचण्ड तीर और धनुष का परिग्रह था । उसका शरीर काली नाम की भीलनी से आलिंगित रहता था। स्थावर और जंगम जीवों की अत्यन्त सावधानी से रक्षा करनेवाले सागरसेन नाम के मुनिश्रेष्ठ को जैसे ही उसने वेधना शुरू किया, और जब तक उसने किसी प्रकार तीर छोड़ा भर नहीं था तब तक तमाल और नीलमणि के समान रंगवाली, शिशुगजों के दन्तखण्डों को अपने कानों में पहिने हुए, पत्ता - तिनकों से खेलनेवाली, गजमद के समान श्यामदेह, तरुपत्रों को धारण किये हुए, लता के कटिसूत्रों वाली, कमलनयनी, मांस और फलों का पात्र हाथ में लिये हुए, ( 3 ) उस भीलनी ने कहा- "मत मारो, हाय हे मुर्ख ! तुझे कुछ भी विवेक नहीं है। वह मृग नहीं, आदरणीय विज्ञानमुनि हैं। लोक के लिए प्यारे इन्हें प्रणाम करना चाहिए ।" यह सुनकर भील ने अपने भुजदण्ड का विभूषण वह धनुष धरती पर फेंक दिया। सद्भाव से मुनि को प्रणाम किया। नाश कर दिया है पाप को जिन्होंने ऐसे उन सुनि ने कहा- "अरे अरे ! तुम्हारी धर्मबुद्धि हो। तुम्हें बोधि, समाधि और सिद्धि प्राप्त 17. APP [क9ि. AP APP नवलयए 11 नवलपिडर' । (3) APF 5.3. AP 13. A
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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