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________________ 95.2.4 J | महाकइपुप्फयंतविरवर महापुराणु सया णिप्पसाओ सया संपसण्णो पहाणी गणाणं पण पेम्मे सिणो तमीसं जईणं दमाणं जाणं उहाणं रमाणं 4. A नियमाओ। 5. A पहाणं दयावहुमाणं सिरेण णमामो पुणो तस्स दिव्वं गणेसेहिं दिट्ठ वियसियसरसकुसुमरयधूसरि णिज्झरजलवहपूरियकंदरि केसरिकररुहदारियमयगलि हिंडिरकत्थूरियमयपरिमलि ( 2 ) 1. AP परिमुक्कमलकमल सया चत्तमाओ । सया जो विसण्णो । सुदिव्वंगणाणं । महवीरसण्णो । जए संजईणं । खमासंजमाणं । पबुद्धत्थमाणं । जिणं वडमाणं । चरितं भणामो । णिसामेह कव्वं । मए किंपि सिद्धं । धत्ता - पायडरविदीवर जंबूदीवइ पुव्वविदेहइ मणहरि । सीवहि उत्तरयति पविमलसरजलि' युक्ख़लवइदेसंतरि ॥1॥ (2) 'पविमलमुक्ककमलछाइयसरि । किंणरकरवीणारवसुंदरि । गिरिगुहणिहिणिहित्तमुत्ताहलि । 'कुररकीरकलयंठीकलयति । [ 291 और सदा विषाद से रहित हैं, सदा प्रसाद से रहित हैं, सदा माया का त्याग करनेवाले हैं, सदा प्रसन्न हैं और संज्ञाओं से शून्य हैं; जो गणधरों के प्रधान हैं, जो दिव्यांगनाओं के प्रेम में अनासक्त हैं, जिनका नाम महावीर है, जो जग में सम्यक् विजेता, यति, दम संयम और क्षमाशील, अभ्युदय, निःश्रेयसरूपी लक्ष्मी के i स्वामी हैं, जो जीवादि पदार्थों के ज्ञाता हैं, जिनमें दया बढ़ रही है, ऐसे वर्धमान जिनेन्द्र को मैं सिर से प्रणाम करता हूँ और फिर उनका दिव्य चरित कहता हूँ। इस काव्य को सुनो, जिसे गणधर ने देखा है और जिसका कुछ कथन मैंने किया है। घत्ता - जिसमें सूर्यरूपी दीप प्रकट है, ऐसे जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में सीता नदी के उत्तर तट पर स्वच्छ सरोवरों के जलवाले पुष्कलावती देश में 15 20 2) जी विकसित सरसकुसुमों की रज से धूसरित है, जहाँ सरोबर विमल और विकसित कमलों से आच्छादित हैं, कन्दराएँ झरनों के जल-प्रवाह से भरी हुई हैं, जो किन्नरों के वीणारव से सुन्दर हैं, जिसमें सिंहों के नखों गज फाड़ डाले गये हैं, जिनमें गिरिगुफा रूपी निधि में मोती रखे हुए हैं, जहाँ घूमते हुए कस्तूरीमृगों पुबुद्ध ं । 7 A दरजति । । 2. AP "गुहमुहणिहित्त । 3. A कत्थूरीमय 14. A कीरकुरर
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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